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शनिवार, 14 जून 2014
लुधियानवी की रचना संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पाओगे इस लोक को तुम अपना न सके उस लोक में भी पछताओगे अपमान विधाता का होगा रचना को अगर ठुकराओगे ............................................ लुधियानवी की रचना से जो प्रहार किया तुमने मुझ पर अविवाहित रहने के फैसले को रचयिता के अपमान से जोङ दिया खारिज करती हूँ एक सिरे से ............................................... अपमान विधाता का क्यों होगा रचना को कहां मैने ठुकराया वजह जरा अब जान लो तुम जब विधाता ने इस धरती पर मानव समाज की रचना की एकल से संयुक्त परिवार बना सुख शांति वहां भी न सुलभ हुआ एक नई दिशा निर्वाण चुना क्या बुद्ध भगवान थे अपमानी? ? ? रचयिता की लीला है न्यारी उसकी रचना हम क्या जानें बुद्ध ठुकराते गर रचना को तुम सम्मान न देते बुद्धिज्म को बुद्ध ने परमार्थ को अपनाया किस भ्रम में तुम जीते हो यथार्थ जीवन में आ जाओ जो पथ अपनाओ सच्चा हो निस्वार्थ प्रेम को अपनाओ सन्यास हो या गृहस्थ जीवन सत्कर्म करते हुए बढते जाओ तब तुम्हे गर्व होगा खुद के उपर इस लोक में भी परलोक में भी सुख शांति को पा जाओगे गायत्री शर्मा
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