रविवार, 15 जून 2014

मीठी यादें वो मुलाकातें खुशियों की सौगात बनी जिनके तुम मेहमान बने वे लोग बहुत ही प्यारे थे तुमने चाहा मुझे सम्मान मिले जाहिर किया अनेको बार मैं नादान समझ ना पाई दुख है मुझे क्यों तुमने अपनी बेबसी की बात कही माना कि गम जाहिर करने से मैने साफ इंकार किया जब गम ही नहीं फिर मैं कैसे अपना गम जाहिर करती जिस दहलीज को पार किया उस पार सभी का प्यार मिला फिर गम कैसा और बेबसी कैसी जिसे आज भी तुम भुला न सके गर स्नेह तुम्हारा साथ हो मेरे जमाने का हर सम्मान फीका होगा! गायत्री शर्मा


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...