मंगलवार, 3 जून 2014

यहाँ तनहा थे और वहाँ तनहा,

यहाँ तनहा थे और वहाँ तनहा,
छोड़ जायेंगे ये जहां तनहा।
न कोई बज्म मयस्सर हमको,
रूह भटकी कहाँ कहाँ तनहा।
चलने को कारबां में चलते हैं,
हो रही जिंदगी यहाँ तनहा।
साथ देगा कोई मेरा क्योंकर,
जायेंगे एक दिन वहाँ तनहा
कौन समझेगा दर्द को उनके,
जमीं तनहा है आसमां तनहा।
मिट तो जायेंगे एक दिन हम भी
पीछे रह जायेंगे निशां तनहा।
इन्तेहाँ आलमे-तन्हाई की है,
जिस्म तनहा है और जां तनहा।
लेके आये हैं दर्दे-दिल-ओ-जां,
हम यहाँ हैं, हो तुम कहाँ तनहा।
कोई रूदाद न सुनता अपनी,
फिर भी करते हैं ये बयां तनहा।
काफिले ऐसे भी बनते हैं 'अली'
हम वहाँ और तुम यहाँ तनहा।.

ए.एस.खान 

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