सुबह के सात बजे
थे सभी की सांसे लगभग थमी हुयी थी सारी दुनिया की निगाहें हमारी तरफ थीं किसी को
हम पर यकीन नही था की हम सफल हो जायेंगे .....कुछ लोगों के सर मंदिरों में तो कुछ
के सर मस्जिदों में झुके हुए थे ..आज हर कोई बस सफल होना चाहता था .......ये थमी
हुयी साँसे लगभग १७ मिनट तक रहीं और जैसे ही नासा द्वारा मिशन की सफलता की खबर
इसरो को भेजी गयी ..जीत की ख़ुशी और इतिहास रचने बाले कारनामे ने सारे देश को जश्न
मानाने का मौका दे दिया |
हमने वो कारनामा
कर दिखाया था जिसे अब तक कुछ उच्च श्रेणी के विकसित देश कर तो पाए थे लेकिन पहले
बार में नही |यह उपलब्धि हासिल
करने के बाद भारत दुनिया में पहला ऐसा देश बन गया जिसने अपने पहले ही प्रयास में
ऐसे अंतरग्रही अभियान में सफलता प्राप्त की है।
मंगल यान करोणों लोगों के नाम के साथ ही नही बल्कि भावनाओं के साथ भी जुडाहुआ था ......
ये इतिहास का वो सुनहरा प्रष्ट है जो हमारे देश की तकनीकी और संसाधनों को कमजोर समझने का ढोंग करने बालों के गालों पर पड़ा हुआ सटीक तमाचा था |
सार्री दुनिया ने आज खुद को खंगाला और हम से अपनी तुलना करने पर मजबूर हो गए ....
सार्री दुनिया ने आज खुद को खंगाला और हम से अपनी तुलना करने पर मजबूर हो गए ....
अब ये हमारी पहचान बन गया है ............
सच है ये मंगल यान सिर्फ यान नही पहचान है हमारी |
अब जब भारत अपने महत्वाकांक्षी अंतरिक्ष मिशन मंगलयान के जरिये अपने सौरमंडल के लाल ग्रह कहे जाने वाले मंगल तक पहुंचने ही जा रहा है, सारी दुनिया मुंहबाए देख रही है, क्यों भारतीय मिशन जो रकम खर्च कर पूरा किया जा रहा है, वह शेष विश्व के लिए अकल्पनीय रूप से कम है...
भारत ने दुनियाभर को ईर्ष्या करने के लिए मजबूर कर देने वाली यह उपलब्धि... कितनी सिद्दत से हासिल की एस बारे में कुछ न कहें तो ही बेहतर है |
यह उपग्रह, जिसका आकार लगभग एक नैनो कार जितना है, तथा संपूर्ण मार्स ऑरबिटर मिशन की लागत कुल 450 करोड़ रुपये या छह करोड़ 70 लाख अमेरिकी डॉलर रही है, जो एक रिकॉर्ड है... यह मिशन भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन या इसरो) ने 15 महीने के रिकॉर्ड समय में तैयार किया, और यह 300 दिन में 67 करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर अपनी मंज़िल मंगल ग्रह तक पहुंच जाएगा... यह निश्चित रूप से दुनियाभर में अब तक हुए किसी भी अंतर-ग्रही मिशन से कहीं सस्ता है...
उल्लेखनीय है कि इसी सप्ताह सोमवार को ही मंगल तक पहुंचे अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के नए मार्स मिशन 'मेवन' की लागत लगभग 10 गुना रही है... अपने मिशन की कम लागत पर टिप्पणी करते हुए इसरो के अध्यक्ष के, राधाकृष्णन ने कहा है, "यह सस्ता मिशन रहा है, लेकिन हमने कोई समझौता नहीं किया है... हमने इसे दो साल में पूरा किया है, और ग्राउंड टेस्टिंग से हमें काफी मदद मिली..."
मंगल ग्रह की सतह पर पहले से मौजूद सबसे ज़्यादा चर्चित अमेरिकी रोवर यान 'क्यूरियॉसिटी' की लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा रही थी, जबकि भारत की तकनीकी क्षमताओं तथा सस्ती कीमतों ने मंगलयान की लागत कम रखने में काफी मदद की... भारतीय मंगलयान दुनिया का सबसे सस्ता अंतर-ग्रही मिशन है, और इसकी औसत लागत प्रति भारतीय चार रुपये से भी कम रही है, यानि सिर्फ 450 करोड़ रुपये, सो, अब भारत नया उदाहरण पेश करते हुए तेज़, सस्ते और सफल अंतर-ग्रही मिशनों की नींव डाल रहा है...
मंगल ग्रह की सतह पर पहले से मौजूद सबसे ज़्यादा चर्चित अमेरिकी रोवर यान 'क्यूरियॉसिटी' की लागत दो अरब अमेरिकी डॉलर से भी ज़्यादा रही थी, जबकि भारत की तकनीकी क्षमताओं तथा सस्ती कीमतों ने मंगलयान की लागत कम रखने में काफी मदद की... भारतीय मंगलयान दुनिया का सबसे सस्ता अंतर-ग्रही मिशन है, और इसकी औसत लागत प्रति भारतीय चार रुपये से भी कम रही है, यानि सिर्फ 450 करोड़ रुपये, सो, अब भारत नया उदाहरण पेश करते हुए तेज़, सस्ते और सफल अंतर-ग्रही मिशनों की नींव डाल रहा है...
इतिहास रचे जाने
का संकेत देते हुए इसरो ने कहा ‘मंगल ऑर्बिटर के
सभी इंजन शक्तिशाली हो रहे हैं। प्रज्ज्वलन की पुष्टि हो गई है।’ मुख्य इंजन का प्रज्ज्वलित होना महत्वपूर्ण था
क्योंकि यह करीब 300 दिन से
निष्क्रिय था और सोमवार को मात्र 4 सेकेंड के लिए
सक्रिय हुआ था। यह पूरी तरह ‘इस पार या उस पार’
वाली स्थिति थी क्योंकि तमाम कौशल के बावजूद एक
मामूली सी भूल ऑर्बिटर को अंतरिक्ष की गहराइयों में धकेल सकती थी। यान की पूरी
कौशल युक्त प्रक्रिया मंगल के पीछे हुई जैसा कि पृथ्वी से देखा गया। इसका मतलब यह
था कि ‘मार्स ऑर्बिटर इन्सर्शन’
प्रज्ज्वलन में लगे 4 मिनट के समय से लेकर प्रक्रिया के निर्धारित समय पर समापन
के तीन मिनट बाद तक पृथ्वी पर मौजूद वैज्ञानिक दल यान की प्रगति नहीं देख पाए।
ऑर्बिटर अपने
उपकरणों के साथ कम से कम 6 माह तक दीर्घ
वृत्ताकार पथ पर घूमता रहेगा और उपकरण एकत्र आंकड़े पृथ्वी पर भेजते रहेंगे। मंगल
की कक्षा में यान को सफलतापूर्वक पहुंचाने के बाद भारत लाल ग्रह की कक्षा या जमीन
पर यान भेजने वाला चौथा देश बन गया है। अब तक यह उपलब्धि अमेरिका, यूरोप और रूस को मिली थी।
कुल 450 करोड़ रूपये की लागत वाले मंगल यान का
उद्देश्य लाल ग्रह की सतह तथा उसके खनिज अवयवों का अध्ययन करना तथा उसके वातावरण
में मीथेन गैस की खोज करना है। पृथ्वी पर जीवन के लिए मीथेन एक महत्वपूर्ण रसायन
है। इस अंतरिक्ष यान का प्रक्षेपण 5 नवंबर 2013 को आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा से स्वदेश
निर्मित पीएसएलवी रॉकेट से किया गया था। यह 1 दिसंबर 2013 को पृथ्वी के
गुरूत्वाकर्षण से बाहर निकल गया था।
भारत का एमओएम
बेहद कम लागत वाला अंतरग्रही मिशन है। नासा का मंगल यान मावेन 22 सितंबर को मंगल की कक्षा में प्रविष्ट हुआ था।
भारत के एमओएम की कुल लागत मावेन की लागत का मात्र दसवां हिस्सा है। कुल 1,350 किग्रा वजन वाले अंतरिक्ष यान में पांच उपकरण
लगे हैं। इन उपकरणों में एक सेंसर, एक कलर कैमरा और
एक थर्मल इमैजिंग स्पेक्ट्रोमीटर शामिल है। सेंसर लाल ग्रह पर जीवन के संभावित
संकेत मीथेन यानी मार्श गैस का पता लगाएगा। कलर कैमरा और थर्मल इमैजिंग
स्पेक्ट्रोमीटर लाल ग्रह की सतह का तथा उसमें मौजूद खनिज संपदा का अध्ययन कर
आंकड़े जुटाएंगे।
भारतीय
विज्ञानिकों को नमन जिन्होंने हमें दुनियां में बेहतर साबित होने का मौका दिया |
सलाम इसरो
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