अपनापन
छिपा है
आपकी
हर
डांट
फटकार में
मगर
दीखता
नही क्यूँ
न जाने
आपकी
आवाज में
खुद को
मेहसूस
करती हूँ
आपकी
आँखों की
नमी के
बीच छिपे
प्रेम में
डॉ. सोनल
छिपा है
आपकी
हर
डांट
फटकार में
मगर
दीखता
नही क्यूँ
न जाने
आपकी
आवाज में
खुद को
मेहसूस
करती हूँ
आपकी
आँखों की
नमी के
बीच छिपे
प्रेम में
डॉ. सोनल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें