मंगलवार, 30 सितंबर 2014

बस दिल में तुम बस जाओ

तोहर ब्रज में आये हम ,तो सो रूप न चाहें हम

बस दिल में तुम बस जाओ
कोई ज्यदाद न चाहे हम ,

तुमरे दरश से मन भर जाए
वो दीदार जरा सा चाहे हम

अंखियों की प्यास बुझे
मन के अहसाह त्रप्त हो जाएँ

हे मुरली मनोहर ,
तुमसे मिलकर

दिल को मिलें सुकों ,
बस इतना ही चाहे हम

दाऊ जी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...