गुरुवार, 9 अक्तूबर 2014

माँ प्रहार न करना, मेरी हत्या के मकसद से ।

उतरी नहीँ जमीँ पर, साँसेँ अभी बाकी हैँ ।
आंगन मेँ इस घर के, कुलाचेँ अभी बाकी हैँ ।
मैँ नन्ही परी बेशक, तेरा सहारा ही बनूँगी ।
दिल मेँ कुछ करने की, अभिलाषेँ अभी बाकी हैँ ।
मासूम कली सी हूँ, सदा खुशबू ही बिखेरुंगी ।
मेरी मीठी बातोँ की, महकासेँ अभी बाकी हैँ ।
माँ प्रहार न करना, मेरी हत्या के मकसद से ।
चंद सवालात हैँ मेरे, कुछ बातेँ अभी बाकी हैँ ।

-Pradeep dixit

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...