सोमवार, 13 अक्तूबर 2014

एक शुरुआत भर थी वाकया-ऐ-मुहब्बत

ख्बावोँ का सफर हकीकत तक चला आया है
खुदा ने रहमतोँ को इस कदर बरसाया है ।
एक शुरुआत भर थी वाकया-ऐ-मुहब्बत
मुद्दतोँ बाद मुलाकातोँ का संमा आया है ।
छोड़ चलेँ इस फरेबी जहनोँ के मुल्क को
चलेँ जहां वादिये-ऐ-इश्क का साया है ।
कश्तियां नहीँ चलती रेत के समंदर मेँ
बड़ा मासूम है जो तैराक बन के आया है ।

-Pradeep Dixit

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