कोई मुद्दा नहीं छोड़ा, कोई मसला नहीं छोड़ा,
जो गुजरा वो हर दर्द रोया जियादा कोई थोड़ा।
मेरा मेहबूब फिर भी क्यों मुझसे अजनबी रहा,
उसके दीदार तक तस्बीर का दामन नहीं छोड़ा।
हरेक अश्क अपनी आँख से कागज पे बिछाया,
तस्बीर की कशिश ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।
कोई गर पूछता है सबब तो मैं कहता हूँ फक्र से,
वो अंजाना सही मैंने उसकी यादों को नहीं छोड़ा।
मुझे उम्मीद है अब भी मेरे राजदारे-मुहब्बत से,
कभी उसको ही मेरे हाल पे आये रहम भी थोड़ा।
वो मेरा जिक्र-ओ-हालत बयां करदे फकत उनसे,
मैंने हर शेर में अपने है खून-दिल को निचोड़ा।
मेरी आँखें न बंद करना ढक के कफ़न से लोगो,
अलग खिसका के रखना चेहरे से दूर ही थोड़ा।
यकीन कौन करेगा तेरी बातों का और क्योंकर,
है संगे-दिल-सनम 'अली' जिस दर पे सर फोड़ा।
राजदारे-मुहब्बत = प्रेम के रहष्य जानने वाला, संगे-दिल-सनम = कठोर हृदय प्रेमी/प्रेमिका
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