शनिवार, 20 दिसंबर 2014

'' इश्क में अपने प्यार को खोने का गम था, अभी हालिया मिला ताजा गम था, हम सबकी रहमतों के बीच जी रहे थे, लोग हमें दिलासा,सांत्वना देते जा रहे थे, मरहम न थी किसी के पास मेरे जख्म की, बस सहानभूति हमको सबकी मिल रही थी, हम परेशान थे,टूट चुके थे,अन्दर से, मगर चेहरे की मुस्कां तीव्र होती जा रही थी, मैंने असल में जिन्दगी ढंग से जीना तभी सीखा, जब जमाने और नियति के दिए दर्द में हसना सीखा, उस दिन मेरी मुस्कुराहट से सब विस्मित हो रहे थे, हम मुस्कुरा रहे थे और सब हमें देख रो रहे थे।। दाऊ जी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...