हमारे शहर की कुछ तंग गलियों पे,
भले नज़र न पडी हो गूगल अर्थ की,
मगर उनकी तस्वीर बसी है दिल में,
होती है ताजा याद मेरे बचपन की।।
दाऊ जी
भले नज़र न पडी हो गूगल अर्थ की,
मगर उनकी तस्वीर बसी है दिल में,
होती है ताजा याद मेरे बचपन की।।
दाऊ जी
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मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...
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