१९ मार्च २०१४ को हमारी
संस्था युराज दीक्षित सेवा सहायताश्रम द्वारा चलाये जा रहे एक मिशन – मिशन अ
डिस्ट्रॉयर करप्शन फोर्ट के माध्यम से
हमें किसी अनजान व्यक्ति द्वारा म.प्र. में विगत चार सालों में हुयीं सैंकड़ों
फर्जी भर्तियों और उनके करवाने बाले के बारे में विस्तृत सूचना प्राप्त हुयी थी
हमने तात्कालिक कार्यवाही का निर्णय लेते हुए प्राप्त सूचनाओं के आधार पर एक गुप्त
टीम का गठन करके उस सम्बंधित शक्श की निगरानी एवं उससे जुडी सूचनाएं एकत्रित करने
के लिए ..सम्बंधित स्थान पर भेज दी ....कुछ दिनों तक उसी तरह की शांति बनी रही और
हमारी टीम को मिले पर्याप्त रूप से गुप्त समर्थन की बदौलत हमने उस शक्श के खिलाफ
काफी सारे ठोस सबूत एकत्रित कर लिए और उसकी एक मजबूत फाईल तैयार करके कार्यवाही के
लिए ऊपरी प्रशासनिक अधिकारियों को भेजने की तयारी शुरू कर दी गयी | मेरे सहयोगी
चाहते थे की हमें सीधे तौर पर वो कागजात मिडिया और ऊपरी प्रशासन को भेज देने चाहिए
ताकि उन पर सीधे से कार्यवाही की जा सके और उनको उनके किये की सजा मिल सके ....मगर
हमारा मत था की उन्हें खुद ही आत्मसमर्पण करने के लिए बाध्य किया जाना चाहिए
क्यूंकि हम बिलकुल नही चाहते थे उनकी सारी जिन्दगी जेल में कटे ....लेकिन हाँ
उन्हें उनके किये की न केवल सजा मिले बल्कि वे संधिन्ग्ध लोगों को भी चिन्नित
करवाएं ..ताकि इस तरीके के आंगे के फर्जी बाड़े को रोका जा सके .....\बस इसलिए हमने
तय किया के हमें उनके यानाह इस फाईल की प्रति पहुंचानी चाहिए ...और हमने वाही किया
......जनाब की निगरानी तेज थी वो फाईल उनके लिए एटम बम बन गयी और उन्हें दिल का
दौरा पड़ गया ....जिसके बाद उन्हें हमीदिया अस्पताल में भारती कराया गया था
.....मुझे जब यह खबर मिली तो सचमुच मुझे भी बुरा लगा और एक झटका भी क्यूंकि हम तो
उनके पूरे गिरोह को मिटाना चाहते थे ..लेकिन ये तो खुद ही मिटने लगे ...अगर एषा
हुआ तो निश्चय ही हमारी साड़ी योजनायें फ़ैल हो चुकी होंगी ....इसलिए हमने तय किया
की हम खुद ही उनसे मिलेंगे और उन्हें ही मुहर बनाकर आंगे के लोगो को पकड़ेंगे ....
हमने उनसे मिलने का प्लान
बनाया और उस फाईल की प्रतिलिपि तैयार करवाकर उनसे मिलने पहुँच गए ...बड़ी समस्या
हुयी लेकिन हमने उनसे मुलाक़ात कर ही ली ...... उन्हें वहां आईसी यु में भारती
कराया गया था ...उससे पहले वो हमसे मिले भी नही थे और न हम उनसे बस उनकी तस्वीर ही
देखि थी |मैंने गर्द का सहारा लेकर उन्हें खोज तो लिया लेकिन नजदीक ही एक महिला एक
बच्ची के साथ बैठी हुयी थी .....आईसीयू में अधिकतम दो ही व्यक्ति मंजूर किये जाते
हैं अत: उनमे से किसी एक को हटना था लेकिन हम अकेले में मिलना चाहते थे बस इसलिए
मैं उनके पास गया और बोला –
हैलो मिस्टर ...रायडर
** (रायडर शव्द का उपयोग उनकी पहचान और
नाम को गोपनीय रखने के लिए किया गया है )
उन्होंने मुझे गौर से देखा
....... वो शायद विश्मित थे उनकी आँखों से न पहचान पाने बाले भाव आ रहे थे |
मैं उससे पहले कुछ कहता उनके
मैडम ही बोल पड़ी ,....इनकी तबियत सीरियस हैं आप बाद में बात करना
मैंने मुस्कुराते हुए कहा –
अब हम आ गए हैं ..ये पूरी तरह से ठीक हो जायेंगे ....एक दम फिटी और फाइन .....आप
बस हमें कुछ वक़्त के लिए अकेला छोड़ दें
उनकी नज़रे मिस्टर से जा
मिली वो शायद अनुमति लेना चाहती थी ...मगर मिस्टर शायद आशंकित थे इसलिए उन्होंने
उनको न में सर हिला दिया
देखिये हमें पता है की आपकी
समस्या क्या हैं ...और हम कानपुर से आये हुए हैं ....हमें आपका मर्ज भी पता है
बेहतर होगा हम और आप कुछ देर अकेलें में बात करें और हमें अपना काम करने दें और बात करते करते हमने उन्हें फाईल की झलक दिखा
दी |
वो मुझे गौर से देखने लगे
.....उनकी आँखों में डर नज़र आने लगा था ....जोकि मेरा उद्देश्य नही था ...इसलिए
हमने फिर से मोर्चा सम्हाला
मेरी बात ध्यान से सुनो इस
फाईल को लेकर आशंकित मत होईये ....हम इक अच्छे दोस्त बनकर आंगे कार्य कर सकते हैं
....मगर उसके लिए आपका ठीक होना जरुरी है ....
और उसके बाद मैंने वह
प्रितिलिपि उनकी मैडम के हाँथ में थमा दी और उनसे कहा – ये फाईल का ओरिजनल प्रिंट
है आप चाहें तो इसे डिस्ट्रॉय कर सकते हैं .......
मैंने अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर उनकी मैडम को थमा
दिया ....और उनसे कहा- ये अपने पति को दे देना ...जब वो स्वस्थ हो जाएँ ....... और
इतना कहकर हम चले आये
(हमने ये फाईल डिस्ट्रॉय और
मित्र बाली बात कहकर सिर्फ एक चल चली थी जिसके माध्यम से हम अपनी योजना को सफल
बनाना चाहते थे |
हमने उस दिन भोपाल में ही
रुकने का फैसला किया और अगले दिन ही उन जनाब का मेरे पास शाम को काल आ गया
मेरे प्लान सफल हो गया था
..उनके दिल को झटका देने बाली वो फाईल उनकी नज़र में मिट चुकी थी शायद यही वजह थी
जिसकी वजह से वो स्वस्थ हो चुके थे ....उन्होंने मुझसे मिलने की तमन्ना बतलाई ..
मैंने भी उन्हें एक ऐशी जगह
बुलाया जहाँ सिर्फ हम लोग आराम से बिना किसी
रुकावट के बात कर सकते थे और वो जगह थी – निर्माणाधीन सी २१ मोल ...होशंगावाद रोड पर
ये मोल भले ही अभी पूरी तरह
से नही बना था लेकिन इसमे वहुत सारे स्टोल लग चुके थे सबसे मजे की बात थे भोपाल
शहर से थोडा हटकर |
वो लगभग ६ बजे शाम को मेरी
बताई जगह पर और बड़ी ही गर्मजोशी के साथ हमसे हाथ मिलाया
हमने भी एक हलकी सी मुस्कान
के साथ उनका अभिवादन स्वीकार करके उन्हें बैठने के लिए आमंत्रित कर लिया ... मोल
न्य था भीड़ वहुत कम थी लेकिन फिर भी हमने अपनी टीम के कुछ लोगों को सुरक्षा घेरा
बनाने और आस-पास की सीटों पर किसी को न बैठने देने का आदेश दे रखा था |
मैंने औपचारिकता वश पूंचा –
क्या लेना पसंद करेंगे मिस्टर........??
वो हसकर बोले आप ही माँगा
लीजिये जो आपको लेना हो हमतो अभी दवा लेकर आये हैं
ओके ..... मैंने मुस्कुराकर
कहा...
आरुफ़ (मेरी टीम का
एक सदस्य ) मेरे लिए एक दही और एक परांठा और मिस्टर ....... के लिए के .इफ .सी का
एक बर्गर .विथ मिनरल वाटर..और आप लोग जो लेना चाहें अपने लिए
वो मेरे मुंह से
बर्गर का नाम सुनकर चौंक गए थे ....वो मुझसे बोले – आपको कैसे मालूम की मुझे बर्गर
पसंद हैं ???
आपके शरीर का
साईज बता रहा है .....मैंने हसकर जवाब
दिया
मेरा जवाब सुनकर वो
भी जोर से हस दिए
व्हाट अ सेन्स
मिस्टर दीक्षित .......... मान गए आपको ..बाय दा वे हम काम की बात करें
हा क्यूँ नही ? हम
आये भी इसी लिए हैं ...
तो बताईये कहाँ से
शुरू करें ??
ये तो आपको तय करना
है ..
मिनरल वाटर आ चूका
था ... मैंने उसे गिलासों में डिवाईड कर दिया ...
बतायिते आप साथ काम
करेंगे या फिर आपका हिस्सा आपको दूं ...
उन्होंने बड़े ही सहज
ढंग से अपनी बात कही थी ...सुनकर तो मुझे एषा लगा जैसे वो इस खेल के मजे हुए
खिलाड़ी हैं
मैंने हलकी सी
मुस्कान दी .....और कहा नही हम हिस्से के लिए इतना रिस्क नही लेते मिलकर काम
करेंगे वो भी मेरे तरीके से
आपके तरीके से
.....??
यानी आप हमारे लिए
काम करेंगे ......
मैंने जिस भाव के
साथ वो बात कही थी उस भाव में वहुत जोर था ..
वो मुझे विस्मित से
घूर रहे थे ........
दीक्षित जी
......क्या आप हमें सही से जानते हैं ........
बिलकुल ...आपकी राग
राग से बाकिफ हैं हम .......आप क्या समझे ये बर्गर नार्मल आर्डर था ...
मेरी बात ने उनके
चेहरे पर पसीना ला दिया था ...... मैंने उनकी तरफ पानी का गिलास बढ़ाया ...जनाब एक
बार में ही खली कर लिए....
तब तक खाना भी आ
चूका था लेकिन वो बर्गर खाना नही चाहते थे क्यूंकि उनका मन ख़राब हो चूका था वहुत
कहने के बाद उन्होंने खाना शुरू तो कर दिया लेकिन वो उस रूप से तैयार नही थे जिस
रूप से खाने के लिए तैयार होना चाहिए था |
अभी वो आधा बर्गर भी
खत्म नही कर पाए थे की हमने फिर से बात शुरू कर दी – हाँ तो हम कहाँ थे
मिस्टर......??
वो निरुत्तर थे
....मैंने अपनी कातिल मुस्कान के साथ उनसे कहा – जनाबे अली जानना तो आपको हमारे
बारे में चाहिए था ...लेकिन आपने पूंचा
नही चलो हम खुद ही बता देते है
मेरी बात बड़े ही
बिसमित होकर वो सुन रहे थे .......
पहली बात आप हमारी
सुरक्षा में हैं ...यानि गिरफ्त में ..
व्हाट
......................................???
मैंने उन्हें चुप
रहने का इशारा किया और आंगे बोलना शुरू किया
मेरा नाम और मेरा
काम मेरे कार्ड पर था ...लेकिन उसके अलावा हम एक काम आऔर करते हैं समाज की भलाई का और सफाई का .....
भलाई मदद करके और
सफाई आप जैसों को धो- सुखाकर सीधा करके समाज के लिए उपयोगी बनाना
उनको मेरी बात से
गहरा झटका लगा था आखिरी निवाला मुंह में फसा रह गया ....मैंने खड़े होकर उनकी पीठ
पर हाँथ फेरा और उन्हें पीने को पानी दिया |
ध्यान से सुनिए मेरी
बात – आपके पास बीस मिनट हैं सोचने के लिए की आपको क्या करना है ....अआपकी फाईल
हमने ही बनायी थी और वो अभी भी मेरे पास है ...
पर तुमने तो
>........... तो तुम मुझे ब्लैक मेल कर रहे हो ..........
मैंने तुम्हे
प्रितिलिपि दी थी और हाँ जी समझना है समझ लो
उनकी आँखों में आसू
आ चुके थे ........ वो बस इतना ही बोले ....काम बताओ
बस आत्मसमर्पण कर दो
और अपने पूरे गिरोह को पकड्बाने में हमारी मदद करो ..........
वो वहुत जोर से रोने
लगे गिडगिड़ाने लगे मगर हमने कोई प्रितिक्रिया नही दी ...उन्होंने बार बार नीचे झुकना शुरू कर दिया ...हम उन्हें
इतना दर्द नही देना चाहते थे .....
इसलिए साफ़ कह दिया
.....मिस्तर ,,...... ये आशु हमें नही रोक सकते ....अगर सचमुच बचना चाहते हो तो
सारा गिरोह पकडवा दो हम आपको किसी भी तरह करके कुछ न क्कुह मदद दिला देंगे जो आपको
वहुत राहत दिला देगी |
अचानक उनमे न जाने
कैसे इतनी ताकत आ गयी वो – चिल्लाकर बोले
तुम्हे जो करना है
करलो... हम वाही करेंगे जो करते आये हैं ......भाड में जाओ तुम सब ..............
और इतना कहकर दर्द
से इतने लगे हम समझ चुके थे की इन्हे फिर से दौरा पड़ा है इसलिए जल्दी से डॉक्टर की
मदद ली गयी ...
करीबन एक घंटे की
मक्स्शत के बाद उनकी हालत स्थिर हो गयी रात के दस बजने बाले थे ....
हम जब अंदर उनके
केविन में गए तो वो रो रहे थे वो वहुत हताश थे ....मुझे लगा की शायद वो इस बात से
गंभीर हो गये हैं
उन्होंने मुझसे कहा
मुझे सिर्फ ५० दिन देदो ताकि मैं इस मार्च बाली भर्ती का काम निबटाकर अपनी बीबी का
इलाज करा लूं ......जेल तो जाना ही है कमसे कम किसी को तो अपनी बच्ची की
जिम्मेदारी सौप दे ....
मैं उनकी बात सुनकर
एक दम चौंक गया था ... एक दम शोर्ट .......
क्या ..क्या कहा
आपने ?? मदद .........जिम्मेदारी ...मुझे खुलकर बताओ ..
मेरी बीबी को ब्लड
कैंसर है ......उसका इलाज कराना है मुझे ..उसके लिए मुझे कुछ ज्यादा ही पैसों की
जरुरत है ....बस इसलिय मुझे आप कुछ दिनों का वक़्त दें हम अपना काम निबटाकर बिना
कुछ कहे आत्मसमर्पण कर देंगे ....
मेरे पास सबकुछ है
मगर वक़्त नही ....मगर तुम्हे लिखित में अस्वष्ण दो तो हम आपकी मदद कर सकते हैं
हमने उन्हें छुपाने
के लिए छाती से लगा लिया ....उन्होंने
मुझसे वादा किया की वो लिखित में देंगे .....
जब वो इस बात पर
तैयार हो गए तो मैंने उनसे कहा आप अपने गुनाहों की कथा खुद ही लिखोगे और सारे
पात्र भी ....इलाज का जिम्मा हमारा रहा लेकिन मदद आप भी करेंगे ...मगर किसी का
भविष्य बर्बाद नही करेंगे |
उनके परिवार के लोग
आ गए थे हम भी उनकी बातों को सच मानकर उनके लिए दुखी हो बैठे थे पता ही नही चला
नींद कब आ गयी हम रात का कहना भी न खा सके ...सुबह जब आँख खुली तो ६ बजने को थे
...हम ग्यारह बजे अस्पताल के लिए निकले तो
पता चला की वो वहां से निकल चुके हैं....
मुझे एक वक़्त को तो
लगा जैसे मैंने कोई धोख खाया हो .....मेरा सर चकराने लगा ... मैंने उनके न. पर काल
लगाया तो व्यस्त आया ...
मैं असमंजस में था
की अब मुझे क्या करना चाहिए ...मैंने तय किया की उनके घर जाया जायेगा ....
और हम उनके घर की
तरफ निकल पड़े ..पूंचते पूंचते जब १२ बजे हम उनके दरवाजे पर पहुंचे तो दरवाजे पर
कुछ लोग थे हमने पूंचा तो बताया अन्दर मीटिंग चल रही हैं हम इंतजार करने लगे
...पता नही उन्होंने मुझे किधर देखा ...वो बहार निकलकर आये और मुझे अपने साथ अन्दर
ले गए और मेरे हाँथ में कुछ दस्तावेज थमा दिये ....जिनमे से एक कमिटमेंट लेटर भी
था जिसपर उन्होंने अपने साईं भी किये हुए थे ....
मुझे नही मालूम की उस
वक़्त मुझे कितनी ख़ुशी थी मैंने उन्हें गले लगा लिया...मुझे यकीं नही था की कोई
इतनी जल्दी बदल भी सकता है ...खैर उन्होंने मुझे मेरा बादा याद दिलाया ... मैंने
भी तत्काल एक स्टाम्प पेपर पर उनकी पत्नी के सम्पूर्ण इलाज में मदद करने एवं एनी
किसी दुर्घटना घटित होने की स्थिति में उनकी बच्ची की परवरिश और उनका ख्याल रखने
की जिम्मेदारी लेने की बात लिखकर अपने
हस्ताक्षर कर दिए
दोनों ही लोगों ने
अपने अपने कमिटमेंट लेटर चार चार लोगों के हस्ताक्षर कराकर आपसे में बदल लिए |
११ अप्रैल २०१४ को
उन महाशय की बीबी को हमने भोपाल के कैंसर हॉस्पिटल “जबाहर लाल नेहरु कैंसर
हॉस्पिटल” में भरती कराया जहाँ उनका इलाज प्रारम्भ हो गया था मगर कुछ दिनों बाद ही हमें एनी मित्रों की
सलाह पर उनको रिफर करके मुम्बई के “ टाटा मैमोरियल हॉस्पिटल” में उनको रिफर करके उनका
इलाज शुरू करवा दिया गया ...मुझसे जो मदद बन पड रही थी हम कर रहे थे ...मेरी नज़र
में कुछ लाख रूपयों के बदले हजारों बच्चों का हक़ छीनने बाले और देश की सुरक्षा को
योग्य हांथो में सौपने बालों को अगर जेल मिल रही थी तो ये सौदा बुरा ही था लेकिन
कहाबत हैं न की बुरा इंसान कम बुरा वक़्त ज्यादा होता है और मेरे साथ याही हुआ
..हमें उस वक़्त काफी परेशानियों से गुजरना पड़ गया
संस्था के पास इतना
बजट नही बचा था क्यूंकि आठ माह पहले की त्रासदी(उत्तराखंड और मुजफ्फर नगर ) में हम
जरुरत से ज्यादा खर्च कर चुके थे ...संस्था का अकाउंट बिलकुल नील पोजीशन पे था और
हम पहले से ही रषद और राहत सामग्रियों पे इतना पैसा खर्च कर चुके थे जिस्की रिकवरी
के लिए हमें कमसे कम १२ माह चाहिए थे ..तब हम अपना घाटा पूरा कर सकते थे|
उत्तराखंड त्रासदी के बाद हमें क्रषि भूमि पर ग्रीन कार्ड तक लेने पद गए थे और ये हमारा निजी प्रोजेक्ट था तो हम बिना सभी
के सहमती के संस्था के धन का उपयोग भी नही कर सकते थे ......
एक काफी मोती रकम का
हमें बंदोवस्त करना था हारे पर्सनल एकाउंट में भी वहुत कम पैसा रह गया था आखिर कार
मुझें अपने कुछ फैसले वापिस लेने की मजबूरी हो गयी और इसलिए हमने तय किया की हम
अपनी सबसे प्रिय महिला मित्र के जन्मदिवस पर तौह्फे में दिया जाने बाला उपहार मुझे
वापस करना पड़ा तब जाकर हम उनकी रकम जमा कर पाए ....... हमारे चेस्ट के पेन के इलाज के लिए सुरक्षित की
गयी रकम भी चली गयी ....|
१४ मई २०१४ को हमने
बुरी तरह से जोड़ तोड़ करके और उन महाशय की मदद से ओपरेशन की फीस जमा करवादी ....
मगर किस्मत का धोखा उन्हें मिल ही गया और २१ मई को एक सफल ओपरेशन के बाबजूद भी
उनकी बीबी उनको और उनकी बच्ची को छोड़कर हमेशा हमेशा के लिए चली गयी ......
मिस्टर ये सदमा
बर्दाश्त न कर सके और अस्पताल में भर्ती हो गये और मानसिक रूप से उनकी हालत काफी
गिर गयी ..करीबन २० दिन लगे उन्हें वापसी करने में ..उस वक़्त तक हमने अपना हर वादा
बखूबी निभाया ....हा इस दौरान मुझे कई बार सस्ते रेस्टोरेंटो और होटलों को खोजना
पड़ा .....कई बार पब्लिक सर्विश का उपयोग करना पड़ा ......मगर परेशानी का दौर तो
हमें देखना ही था वो ख़त्म हो गया|
ये वहुत ही खर्चीला
प्रोजेक्ट रहा जिसकी वजह से वहुत सारे लोगों को मिलने बाली मदद रुक गयी | हम खाली
हाँथ हो चुके थे लाख खर्चे कम करके भी हम कई और काम नही कर पा रहे थे ...मानसिक
हालत काफी खराब हो चुकी थी|
मिस्टर ने अपना वादा
निभाया और वहुत सारे लेख हमें सौप दिए ...जिनमे वहुत सारे सबूत थे ... उसमे कई मंत्रियों
के भी नाम थे ... |
मैंने सम्पूर्ण
कागजातों को एक फाईल का रूप देकर हमने एक गुमनाम ख़त के सहारे माननीय
मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के
यहाँ डांक के माध्यम से भिजवा दी ....और उनसे निवेदन किया की क्रपया कार्यवाही
करें और नियम कडे करें ताकि योग्यता को बाजिब हक़ मिल सके और राष्ट्र एवं जनमानस की
सुरक्षा व्यवस्था से खतरे में न डाले |मैंने मिस्टर को पुलिस के हवाले नही होने
दिया आऔर उनका नाम भी हटा दिया था और उनकी फाईल को आग के हवाले कर दिया था |
मैंने यह कदम इसलिए
उठाया क्यूंकि भारतीय कानूनानुसार – गलत तरह से या योग्य व्यक्ति भी सिर्फ निलम्बन
ही झेलते हैं और इतनी बड़ी संख्या में अगर निल्मबन हुआ तो कभी न कभी वो बहल जरुर हो
जायेंगे इससे क्या फायदा होगा ?? हमारे पास कई उदाहरण है जैसे यु.पी. भर्ती जो
मुलायम के शासन काल में हुयी थी ... और भी कई
उदाहरण हैं |इसलिए हमने तय किया जो लग चूका है और एक वर्ष से ज्यादा का समय
काट चूका है उसकी शिकायत करके भी कुछ नही मिलने बाला पर हाँ जो नये भर्ती हुए हैं
उन पर कार्यवाही हो सकती है |इसलिए कुछ भर्तियों पर आपत्ति दर्ज करवा दी गयी थी और
वर्तमान में कोर्ट में केश चल रहे हैं |
मिस्टर को ऊपर बाले ने कड़ा दंड दिया था ...अब मैं नही
चाहता था की वो दंड उस मासूम बच्ची को भी भोगना पड़े .......यहाँ की अदालत में तो
लोग बच सकते हैं मगर परवरदिगार की अदालत में नही |
उनकी दिमागी हालत आज
भी सही नही है ...मगर वो अब अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं और उनके कुछ सहयोगी
भी .... माननीय मुख्यमंत्री जी ने कार्यवाही की या नही मालूम नही मगर स्वीकार जरुर
किया .....और कुछ कडाई भी की और सबसे आखिर
में हम ... अपनी जिन्दगी को वेहतरीन ढंग से जी रहे हैं ...मगर वो महिला मित्र
तोहफा न मिलने की वजह से अब तक मुझसे नाराज हैंक्यूंकि उन्हें सच नही मालूम |
फर्जी भर्ती करने और
कराने बाले को राष्ट्रद्रोह के तहत सजा मिलनी चाहिए |नियमों में सुधार और कड़ा रुख
अपनाया जाना चाहिए |नेता और अफसर हमें इसलिए लूट पाते हैं क्यूंकि हम लुटना चाहते
हैं इसलिए पहले आम जन में सुधार होना आवश्यक है |
सबसे महत्वपूर्ण –
योग्य व्यक्ति को खुद की प्रितिभा पर शंका न करते हुए कानून की मदद लेनी चाहिए
..ताकि आपका हक़ न छीना जा सके |
मैं लाखों खर्च करके
भी उनकी बीबी नही बचा सका.... और चाहकर भी अपना मिशन सफल न करा सका ..... क्यूंकि
मैं हीरो नही था और न मुझे बनना था |
आपकी प्रितिक्रियाओं
का इन्तजार है |
जी. आर. दीक्षित
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