बुधवार, 25 फ़रवरी 2015

इश्क कभी मरता नही -5

तुम विस्तार से कहानी बता सकते हो क्या?? हा क्युँ नही सहाब जी जरुर, इस गाँव के एक जमींदार जी थे रणवीर सिंह तौमर एक एकलौते पूरे गाँव में तोमर मगर उनका बोलाबाला इतना था कि आस पास के पूरे गाँवों में यादव वहुल्य क्षेत्र होने के बाद भी किसी की हिम्मत नही होती थी उनके खिलाफ बोलने की।उनके पाँच लडके थे और एक लडकी।जिसका नाम था ममता।बड़े ही नाजों से पाल पोसकर उन्होने बडा किया था उसे, हिरनी जैसी सुन्दर बडी -बडी काली आँखे जिनमें से होकर मादकता की कभी कभी नदियाँ बह जाया करती थी।उसकी तिरछी चितवन इतनी खतरनाक थी कि कभी कभी लगता था मानो इसने कोई छोडकर लोगों को घायल करना शुरु कर दिया हो।सुन्दर नर्म,नाजुक,गुलाब की पंखुडियों की तरह नरम ,रसीले गुलाब जामुन की तरह रस भरे औंठ जिन पर बैंठ कर कौन सा भँवरा इस रस स्वादन का मजा लेने को न तरसता हो। रेशमी मुलायम रेशम की तरह उसके बाल जब हवाओं के झोंके से ऊपर आसमान को गति मान होते तो लगते थे जैसे वो आसमां को छूने लगे हो और चाँद सा चमकदार चेहरा छोड कर भाग रहे हों। जब करीने से उसकी एक बालों के गुथे जूडे से निकल कर जब उसके चेहरे पर आती है तो उसकी खूबशूरती चार गुनी और बड जाती थी। फिर वो अपनी तर्जनी से बडे ही सलीके से उसे जब समेट कर वापस पहुँचाती है और हल्के से मुस्कुरा जाती हथी बस उसकी यही यदा काफी थी उस लल्ईयाँ तो क्या सभी पर सितम ढाने के लिए । वो उमर् के उस पडाव पर थी जब आम तौर पर लडकियाँ अपने यौवन को प्राप्त कर चुकी होती हैं।उसने भी यौवन को प्राप्त कर लिया था।उसके शरीर की सुन्दरता को बढाने बाले उभार इतने उन्नत हो चुकेे थे कि किसी भी आते जाते शख्स की आहें निकल जायें। मस्त उन्नत शरीर का उसका हर हिस्सा जवानी के कदमों को पार करके वो वहुत खूबशूरत फूल बन चुकी थी।गाँव की बडे परिवारों की लडकियाँ अक्सर घर की चार दीवारी में ही कैद रहती है उन्हें बाहर जाने का मौका भी वहुत कम ही मिलता है।लल्ईयाँ के बाबू जी तोमर सहाब के यहाँ वर्षो से खेती बाडी का काम देख रहे थे।ललईं बहार रहकर पला बढा था शायद इसीलिए वह गाँव के सबसे पढे लिखें लोगों में से गिना जाता था। बडा ही मिलनसार और शांत स्वाभाव का छरहरी देह बाला पूरी एथलीटिक बॉडी सेप बाला लडका था ललईयां।पहली बार उसने ममता को तब देखा था जब ममता एक फूल सी नाजुक कच्ची कली थी।तब दोनो को एक दूसरे को देखा था ।तब किसी के ख्यालात ऐषे नही थे।ममता तब ग्यारवी में थी ।एक बार ममता बस से भरथना से घर आ रही थी ,बस से उतरने के बाद उसे चार किमी पैदल रास्ता तय करना था जिसके बाद ही वह गाँव पहुँच सकती थी।हर रोज तो कोई न कोई उसे लेने आ जाता था मगर उस दिन किसी कारणवश कोई नही आ सका था।और आज उसकी सहेलिंया भी नही थी वो अकेली घर जानें में डर रही थी।मगर उसी बस से बहार से उतरे ललईंया, ने उसे देखा तो देखता ही रह गया था मगर वो किसी से कुछ नही कह सकता था।करीबन 6 साल बाद वह वापस आया था।इसी लिए वह चुपचाप उसके पीछे पीछे चल दिया।ममता को भी सहारा मिल गया था।मगर आसमान में छाये हुए बादलो ने उस सहारे को ज्यादा देर तक नही रहना दिया और तेज वारिस के साथ वरस पडा।वो दोनो तेजी से भाग खडे हुए और भाग कर इसी पेड के नीचे आकर खडे हो गये।तब गाँव में दूरसंचार के साधन नही थे।दोनो के बदन भींग गये थे।बरसात तेज होती गई और आस पास अंधेरा घिरता चला गया दोनो ही चुपचाप सहमे से पेड के नीचे खडे हुए थे। डरी सहमी ममता का डर अंधेरे ने और बढा दिया था ये पहला मौका था शायद उसके लिए जो वह बिना अपनों के बीच अकेली थी।तभी ललईयाँ ने उससे पूँछ लिया- आप भी इसी गाँव की हैं?? हाँ बडा ही सीमित सा उत्तर दिया था ममता ने, मैं भी इसी गाँव का हूँ,सोबरन प्रजापति का लडका। अच्छा तो तुम सोबरन चचा के लला हो ,वो हमार यहीं काम करते हैं। अच्छा तो आप रणवीर ताऊ की लडकी हो । इसी तरह बातों के सिल सिला चल निकला कितने में पढती हो क्या करती हो,बगैरह बगैरह। वारिस कुछ कम हुई तो दोनो ही चल दिए मगर ललईयाँ पहले अपने घर जाने की बजाय ममता को घर छोडने के लिए गया और फिर अपने घर पर गया था। ललईयाँ ऊरई के नवोदय विधालय में पढा लिखा था।अच्छे नम्बरो में वारहवी पास की थी उसने।सरकार ने उसे उच्च शिक्षा के लिए स्कालशिप का ऑफर दिया था।सारे घाँव में खुशी के लड्डू बटबाये गये थे मगर किसकी हिमाकत जो हवेली तक पहुँचा सके।क्युँकि हवेली में नीची जात के हाथ का छुआ पानी तक नही पिया जाता था फिर ये तो किसी की खुशी का प्रसाद था वो उसे कैसे ले लेते। ललईयां कुछ दिन गाँव में रुका और किसी न किसी बहाने से ममता से मिलने की कोशिश करने लगा।शायद उसके दिल में..... दाऊ जी

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...