सपने हजार बनकर
आँखों में उतर जाते हैं
सच करने की ख्वाहिश में
खुद को ही भूला देते हैं
मेहनत के दम तकदीर बने
नियति के वश क्या रखा है
कर्मों की शम्मा जब जलती है
जीवन को रौशन करती है
दौङ है ये जिंदगानी अगर
रूक जाने का ङर क्यो रहता है
क्यों टूटे बिखरे सपनो संग
कोई शख्स जहां से चल बसता है
गायत्री शर्मा
आँखों में उतर जाते हैं
सच करने की ख्वाहिश में
खुद को ही भूला देते हैं
मेहनत के दम तकदीर बने
नियति के वश क्या रखा है
कर्मों की शम्मा जब जलती है
जीवन को रौशन करती है
दौङ है ये जिंदगानी अगर
रूक जाने का ङर क्यो रहता है
क्यों टूटे बिखरे सपनो संग
कोई शख्स जहां से चल बसता है
गायत्री शर्मा
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