शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

इश्क कभी मरता नही -6

कुछ ख्यालात मुहोब्बत के पनपने से लगे थे।वो शायद दिल ही दिल में उसको प्रेम करने लगा था।ईधर ममता को भी बाहरी हवाओं के असर ने बाँध लिया और उसने अपनी आजादी का लाभ लेते हुए स्वच्छ सुन्दर भावनाओं के आकाश में उढान भरने के लिए अपने पंख फैलाने शुरु कर दिए थे। इसी दौरान ममता के बडे भाई नरेन्द्र प्रताप का विवाह आ गया।सारे गाँव के लोग हवेली पर जमा हुए सबको अपनी अपनी जिम्मेदारी दी गई थी।ललईयाँ को भी काम मिला था गाँव बालों के भोजन पानी की व्यवस्था का ।यहीं मौका मिला उसे ममता से और अधिक पास जाने का।कभ जल्दबाजी से अगर दोनो एक दूसरे से टकरा जाते तो सिर्फ हल्की सी मुस्कान के साथ एक दूसरे को देख लेते।आग इश्क की थी ।तो दोनो तरफ ही लग उठी।जब दो दिल सुलगते हैं तो धुँआ उठ ही जाता हैं।शादी की हसीन रातें गुजर गईं।मगर दिलों में प्रीत के धागे छोड गई।इसी दौराान ललईयां का चयन हो गया कानपुर के सरकारी तकनीकी कॉलेज में और वो पढने चला गया। ईधर ममता संवेदना में डूबी रहने लगी यादों का जोर चल उठा था ।वो उसे वहुत मिस करने लगी थी। कभी कभी वह सोबरन चाचा से पूँछ भी लेती कि- चाचा ये ललइंयां कब आयेगा। वो हसकर कहकर चले जातेे थे।दोनो में किसी ने अब तक मुहोब्बत का इजहार नही किया था मगर प्रेम तो दोनो तरफ ही था। आज 4 माह बाद ममता खुश थी और जानबूछकर अपने स्कूल गई थी क्युँकि ुसे आज सोबरन चाचा ने बता दिया था कि ळलईंयां आने बाला हैं। उशका इंतजार ज्यादा देर नही चला और शाम के वक्त ललइंया बस से उतर ही गया।ममता तो फूली न समाई जैसे उसे ईंद का चाँद मिल गया हो ।मगर लोक लाज के भय से वो अपनी भावनाओं को काबू करने में कामयाब रही।ललईंया ने जब ममता को देखा तो उसकी खुशी सातवे आसमान पर थी आखिरकार उसे उसका दीदार हो ही गया था।जिसके लिए उसने पिछले चार माह का एक एक दिन काटकर इंतजार किया था। ममता रुठने का नाटक करती हुई चुपचाप आंगे चलने लगी,ललइंया को ये व्यवहार अटपटा जरुर लगा मगर वह खुश था कम से कम दीदार तो हुआ । सुनो (ललइंया ने ममता को आवाज दी) ममता ने पलकर देखा और मुँह ऐठ कर बोली - बोलो आप नाराज हो हमसे तुम लगत का हो हमाये,जो हम नाराज होयें उसके इस उत्तर से ललइयां के दिल में खिले हजारों प्यार के फूल,सारा उत्साह हवा हो गया। वो बोला नही कछु नाहिं, हम तो सोच रहे थे आप हस नाहिं रहीं हो इसलिए। मगर ममता कुछ नही बोली। गाँव नजदीक आ गया और दोनो चुपचाप अपने अपने रास्ते अलग हो लिए। ललईंया को तेज बुखार आ गया था उसका इश्क का नशा काफूर था,उसकी जगह वह तेज ज्वर से पीडित हो चुका था।अब वह न तो किसी से मिलता था और न ही कहीं आता जाता था।उसके पिताजी की जिद पर वह खुद का डॉक्टर के पास लेकर गया।जहाँ उसे संयोग से ममता भी मिल गई।आज ममता ने उसे फिर से तिरछी निगाहों से देख कर एक हसीन मुसकान उसकी तरफ फैंक दी थी।बस इसी मुस्कान का तो इंतजार था उसको ।अब कौन सी दवा की जरुरत रह गई थी उसको अब भला कौन सा रोग रह गया था जो उसको रोक सकता था।वही पुरानी चेतना वही पुरानी रंगत सब लौट आई थी उसके चेहरे परे। अब फिर से ललईंया गाँव में घूमने जाने लगा था।शाम ढले खेतों की तरफ जाने लगा था जहाँ से वह हवेली पर खडी ममता को देख देख कर खुश हो लेता था। एक दिन उससे हिम्मत की और ममता की तरफ हाथ हिला दिया ।बदले में ममता कुछ नही बोली और चुपचाप अटारी से उतरकर नीचं चली गई।ललईया बुरी तरह से डर गया। और इतना कहकर वह बोला - सहाब जी सुबह होने बाली है अब मुझे घर जाना होगा।हमरी लुगाई जाग गई होगी वो परेशान होत होगी। अरे यार पूरी बात तो सुना दो यार। नही सहाब जी हमको जाना होगा,आप अब मत आना यहाँ। अरे काहे नही आऊँगा,कम से कम पूरी कहानी सुनकर ही कोई फैसला लूँगा। मगर सहाब जी ..... मैंने उसका मुँह अपने हांथ से बन्द किया और जेब से कुछ रुपये निकालकर उसको दे दिए, और बोला- ये खर्चा पानी रखलो और कुछ अच्छा खा पी लेना।जरुरत का सामान खरीद लेना। अरे सहाब जी नही,हम ये पैसा का क्या करेगें?? अरे कुछ भी करो ये हमारी तरफ से तुम्हारा उपहार है। उसने रुपये हाथ में लिए और आंसुओं के साथ पीछे को कदम बढाने लगा ।मैंने भी उसे वाय कहा और आकर गाडी में बैठ गया। मैंने दूर दूर तक नजर दौडाई मगर वो मुझे अब कहीं भी नही दिख रहा था हमने सोचा शायद वो जल्दी में रहा होगा। मैंने गाडी स्टार्ट की और चुपचाप वापस अपने पुराने गंतव्य की तरफ बढ चला। उसकी सुनाई हुई कहानी से अब तक हम कुछ निर्णय तक नही पहुँच सके थे,मगर किसी खास बात के होने का जरुर आभास सा होने लगा था। रास्ते भर उसी की दास्ता/ममता और ललईयाँ की कहानी और समाज के हालात पर ही सोचता रहा।पता ही नही चला कब सफर खत्म हो गया दाऊ जी

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