ये फूल
ये पंखुडिण्यां
ये कोमल
प्यारी
तितलियाँ
ये बसंत
प्यारा सावन
कौन मुझसे
रहता जुदा है
ये राखी होली दीवाली
ये ईद
रमजान
कौन सा त्योहार
मेरे बिना है,
मैं वेटी हूँ
चमकती हूँ शक्तिपुंज सी,
तुम्हारे घरो में
तभी तो उजाली है,
हैं अंधेरा वहाँ
जहाँ मैं नही
भले सूर्य की
कितनी भी लाली है,
शमसान ही है
वो जगह
जहाँ मेरी नही
किलकारी है,
डॉ. सोनल
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