शनिवार, 7 मार्च 2015

जो ये आँखे न होती, तो जहाँ का मजा न होता,

जो ये आंखे न होती,तो जहाँ का मजा न होता,
 मुझको मेरा ही,कभी दीदार न होता।

सोचता रहता और सिर्फ सोचता ही रहता,
 मुझको मेरा अपना अहसास न होता।

 दुनियाँ जहाँन के बीच रहने को कोई किरदार न मिलता,
हर रात गुजरती वीरान सी,हर रोज मेरा किरदार मरता।

 किसी वीरान से खण्डहर में पडा होता अक्श मेरा,
कौन उसे करीने से सजा,दिलों में सजा कर रखता।

 हमने दिल से दोस्ती करके जीने का सलीका सीखा है,
कौन भला हमें कब अपनी जिन्दगी समझता।

जो ये आँखे न होती, तो जहाँ का मजा न होता,
 मुझको मेरा ही ,कभी दीदार न होता।

 दाऊ जी

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