मेरी आँखों में उतर आई है तुम्हारे इश्क की रौनक
खुद ही चमक उठी हैं ये अब याद आ गयी है चाहत ,
बस गया है तुम्हारा अक्श इनमें कुछ इस तरह से
खुद ही टपक आता है अश्क मिल जाती है राहत ,
मैं रोज आइनों में ताककर ,नयनो से तुमको निहारता हूँ
लगता है जैसे तुम आ गयी हो ,होती है जब भी कोई आहाट,
तुमको पाकर मैं खुद को कब का भुला चूका हूँ
मगर मेरे दिलों में बसी हुयी है अब तक चाहत ,
कोई गम जब भी आता है पास मेरे ,मैं हंसकर टाल जाता हूँ ,
दिल इतना भरा है इश्क में ,नही होता अब आहत ,
मेरी आँखों में उतर आई है तुम्हारे इश्क की रौनक
खुद ही चमक उठी हैं ये अब याद आ गयी है चाहत ,
जी.आर.दीक्षित (दाऊ जी )
खुद ही चमक उठी हैं ये अब याद आ गयी है चाहत ,
बस गया है तुम्हारा अक्श इनमें कुछ इस तरह से
खुद ही टपक आता है अश्क मिल जाती है राहत ,
मैं रोज आइनों में ताककर ,नयनो से तुमको निहारता हूँ
लगता है जैसे तुम आ गयी हो ,होती है जब भी कोई आहाट,
तुमको पाकर मैं खुद को कब का भुला चूका हूँ
मगर मेरे दिलों में बसी हुयी है अब तक चाहत ,
कोई गम जब भी आता है पास मेरे ,मैं हंसकर टाल जाता हूँ ,
दिल इतना भरा है इश्क में ,नही होता अब आहत ,
मेरी आँखों में उतर आई है तुम्हारे इश्क की रौनक
खुद ही चमक उठी हैं ये अब याद आ गयी है चाहत ,
जी.आर.दीक्षित (दाऊ जी )
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें