इश्क की तंग गलियों से
रोज हजारों चाँद निकलते हैं
बिखेरते हैं चांदनी वो
दिलों में अहसास भरते हैं
उन्हें देखे तो लगता है
जैसे कारवां-ओ –चाँद निकलता
है
कुछ ख्याब सजते हैं दिलों
में
आशिक आंह भरते है
इश्क की तंग गलियों से
रोज हजारों चाँद निकलते हैं
जो जितना हसीं होता है
वो उतने दिलों में धडकता है
जीते हैं कई चातक निहार के
उन्हें अम्रत सा रस मिलता
है
लिए बंजर दिलों को वो, बैठे
हैं चौराहों पे
इश्क की बरसात का इन्तजार
करते हैं
इश्क की तंग गलियों से
रोज हजारों चाँद निकलते हैं
जी आर दीक्षित
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें