शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

इश्क की तंग गलियों से

इश्क की तंग गलियों से
रोज हजारों चाँद निकलते हैं

बिखेरते हैं चांदनी वो
दिलों में अहसास भरते हैं

उन्हें देखे तो लगता है
जैसे कारवां-ओ –चाँद निकलता है

कुछ ख्याब सजते हैं दिलों में
आशिक आंह भरते है

इश्क की तंग गलियों से
रोज हजारों चाँद निकलते हैं

जो जितना हसीं होता है
वो उतने दिलों में धडकता है

जीते हैं कई चातक निहार के
उन्हें अम्रत सा रस मिलता है

लिए बंजर दिलों को वो, बैठे हैं चौराहों पे
इश्क की बरसात का इन्तजार करते हैं

इश्क की तंग गलियों से
रोज हजारों चाँद निकलते हैं

जी आर दीक्षित 

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