जल रही आग है ,जल रहा है
बदन ,
उठ रहा है धुयाँ ,लग रही है
तपन ,
जाने कैसा ये रोग है ,जालिम
इश्क का ,
खामोशियों में खोता जा रहा
है मन ,
कहाँ खो गए होश, न रहा जोश
दुबला गया ,जो कसरती था बदन
,
आज भी गलों पे रहता है हाँथ
बर्षों पहले कोई इसका ले
गया था चुम्बन
तुमसे गले मिलके महीनो
नहाये भी नही
कहीं तुम्हारी खुशबू रहित न
हो जाये मेरा बदन
कहने लगा मुझको फ़कीर ये
सारा जमाना
क्या से क्या सूरत बनाली
हमने,तुम्हारी कसम .
तुमसे मिलके कुछ अहसास आ गए
पहले अहसासों के बिना जी
रहे थे हम
अभी बंजर पड़ा दिल ,सूखा सा खेत
बैमोसम ही सही ,बरसात कराओं
न तुम
जरा एक बार आके फिर लग जाओ
गले से
ये दिल बन जाए मेरा फिर से
मधुवन ,
दाऊ जी
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