शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

ये दिल बन जाए मेरा फिर से मधुवन


जल रही आग है ,जल रहा है बदन ,
उठ रहा है धुयाँ ,लग रही है तपन ,

जाने कैसा ये रोग है ,जालिम इश्क का ,
खामोशियों में खोता जा रहा है मन ,

कहाँ खो गए होश, न रहा जोश
दुबला गया ,जो कसरती था बदन ,

आज भी गलों पे रहता है हाँथ
बर्षों पहले कोई इसका ले गया था चुम्बन

तुमसे गले मिलके महीनो नहाये भी नही
कहीं तुम्हारी खुशबू रहित न हो जाये मेरा बदन

कहने लगा मुझको फ़कीर ये सारा जमाना
क्या से क्या सूरत बनाली हमने,तुम्हारी कसम .

तुमसे मिलके कुछ अहसास आ गए
पहले अहसासों के बिना जी रहे थे हम

अभी बंजर पड़ा दिल  ,सूखा सा खेत 
बैमोसम ही सही ,बरसात कराओं न तुम

जरा एक बार आके फिर लग जाओ गले से
ये दिल बन जाए मेरा फिर से मधुवन ,

दाऊ जी




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