सोमवार, 14 सितंबर 2015

नस्तर तेरा नेज़ा तेरा नज़र की मिशाल दूँ,

नस्तर तेरा नेज़ा तेरा नज़र की मिशाल दूँ,
कोई दर्द हो ऐसा जो तेरी नज़रों में डाल दूँ.


तू तीरे-नज़र देखे जिसे हो जाता है घायल,
अब्रू की कटारी में तेरी आब ऎसी ढाल दूँ.

बिखराके जुल्फ राह से गर तुम गुजर जाओ,
अपनी नज़र से घटाओं की रंगत निकाल दूँ.

आ के तेरी महफ़िल में जो मदहोश हुआ हूँ,
नाज़ुक लबे-तब्बसुम हो शराबों को चाल दूँ.

लहराता बदन तेरा लगे मनिन्दे-शाखे-गुल,
बल्लाह! इस अदा पे क्यों न दिल निकाल दूँ.

फकत एक मेहरबाँ नज़र जो हो मेरी जानिब,
मैं जिन्दगी से जीने की हसरत निकाल दूँ.

नूरी-रूखे-अनवर तेरा रंगे-गुलनार हो जाए,
खुदा तौफीक दे मुझे, मैं तुझे वो जमाल दूँ.

मगरूर हुश्नवाले बता अब क्या करूँ जतन,
कैसे दिले-'अली' से जाने मैं तेरा खयाल दूँ.

नस्तर = चाकू, नेज़ा = भाला, अब्रू = भौंहें, आब = पानी (चढ़ाना), लबे-तब्बसुम = होंटों की चमक/गीलापन, मनिन्दे-शाखे-गुल = फूलों की डाली के समान, हसरत = तीब्र इच्छा, नूरी-रूखे-अनवर = आकर्षक मुख मंडल, रंगे-गुलनार = अनार सा रंग/लाल, तौफीक = कुशल शक्ति, ज़माल = खुबसूरती।

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