मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

रस्मे-टैगिंग को निभाएं तो निभाएं कैसे?

रस्मे-टैगिंग को निभाएं तो निभाएं कैसे?
हर तरफ टैग हैं अपने को बचाएँ कैसे?

बात होती जो शेयरिंग की मान भी लेते,
बात टैगिंग की मगर मान भी जाएं कैसे?

हमको तो इल्म भी नहीं, हैं कहाँ पर टैग,
पता गर चल भी जाये, तो हटायें कैसे?

बोझ होता जो लायकिंग तो उठा भी लेते,
एक सौ टैगों का मगर बोझ उठाएं कैसे?

हाथ एक दम से हैं मसरूफ हटाने में इन्हें,
हो अगर सर भी खुजाना तो खुजायें कैसे?

भूल भी जाते, हो अगर बात भूलने वाली,
दोस्ती ही दांव पे लगी है, तो भुलाएं कैसे?

यूं तो हमको बहुत रियाज रहा मनाने का,
बड़ा मुश्किल है मगर इनको मनाएं कैसे?

सब्र भी कितना करें सोचें भी कहीं जाने की,
राह दिखती नहीं 'अली' जाएं तो जाएँ कैसे?

मसरूफ = व्यस्त, रियाज = अभ्यास/आदत,

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...