शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

वर्ना दिल तो बुरा नहीं।

गुजर के हदों से करते रुसबाई क्या बुरा नहीं?
वरना ये मैदाने फेस-बुक भी इतना बुरा नहीं,

तल्खिये-जुबां और शोख़िये-तेबर बता रहे हैं,
दिलों में नीयते-बद है वर्ना दिल तो बुरा नहीं।


इल्तिजा इतनी ही करूंगा मैं भी गुलाम नहीं,
इज़्ज़त करोगे तो मिलेगी तुमको भी बुरा नहीं.

आइना है खुद अपने बजूद का जो दिखाओगे,
औरों को भी दिखेगा तुमको क्योंकर बुरा नहीं.

अर्ज़े-अदना है मेरी नाज़नीनों से भी सरे-आम,
हुश्न सादगी में है शोख़-जलबे दिखाना बुरा नहीं.

खुद की तस्बीर लगा करते सवाल कैसी लगी हूँ,
सुनने का हो रियाज सुंदर, मादक कहे बुरा नहीं।

जब आ ही गई तस्ब्बीर हसीँ नज़रों में 'अली' के,
मिट गई हसरते-दीदार लुत्फ़ नज़रों का बुरा नहीं।

रुसबाई = बदनामी, तल्खिये-जुबां = कटु वचन, शोख़िये-तेबर = शरारती हाव-भाव, नीयते-बद = गलत इरादे, इल्तिजा = प्रार्थना, अर्ज़े-अदना = मामूली निवेदन, नाज़नीनों = सुंदरियाँ, रियाज = अभ्यास/आदत, हसरते-दीदार = दर्शन की अभिलाषा, लुत्फ़ = आनन्द।

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