भूलकर ही सही,
रात में ही कभी,
चाँद की डोर से,
चमकती रात में,
उतर आना कभी,
मैं निहारुँगा तुझे
रोज ताकूँगा तुम्हे
कभी तो ख्याब में
सुनहेरे आसमान में,
उतर आना कभी,
सुबह के साज में
हवा के साथ में
ढलती रात में,
धूप के साथ ही ,
उतर आना कभी,
खिलते फूल में
ओंस की बूँद सी
इस जहाँ में कहीं
नजरों में ही सही
उतर आना कभी,
जो देखूँ आईना,
तू हो मेरे सामने,
मेरे अक्श में
नजर आना कभी
उतर आना कभी।
जी आर दीक्षित
रात में ही कभी,
चाँद की डोर से,
चमकती रात में,
उतर आना कभी,
मैं निहारुँगा तुझे
रोज ताकूँगा तुम्हे
कभी तो ख्याब में
सुनहेरे आसमान में,
उतर आना कभी,
सुबह के साज में
हवा के साथ में
ढलती रात में,
धूप के साथ ही ,
उतर आना कभी,
खिलते फूल में
ओंस की बूँद सी
इस जहाँ में कहीं
नजरों में ही सही
उतर आना कभी,
जो देखूँ आईना,
तू हो मेरे सामने,
मेरे अक्श में
नजर आना कभी
उतर आना कभी।
जी आर दीक्षित
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