समयः- रात के ठीक 2:25 मिनट
मौसमः- जनवरी का कोहरे से भरा हुआ, 5°C के आसपास का तापमान
स्थानः- दिल्ली से मुम्बई जाने वाले मार्ग पर सुनसान रेलवे का एक पुल,
'झुक'-'झुक'-'झुक'-'झुक'
किसी रेलगाड़ी के आने का तीव्र होता जा रहा स्वर,
जिसके ठीक 2:31 पर इस पुल से गुजरने की सम्भावना थी।
'किरिच्'-'किर्र'-'क्रच'-'क्रच'
किसी आरी से काटे जाने की मंद ध्वनि,
'आहsssss'......'उहsssss''
एक मानवीय करुण कराह,
क्या कोई मानव रेल की पटरियों को काट रहा था?
पुल पर रेल की पटरियों के मध्य कोई तो था!
कोई मानवीय साया,
नग्न बदन,
कमर पर लिपटी एक रस्सी,
कलाई पर चमकती कोई चीज,
कंपकंपाती ठण्ड में भी पसीने से लथपथ शरीर,
यकीनन ये कोई पागल ही था।
और वो कुछ काट भी रहा था।
पर क्या?
उसके हाथ में लोहे की एक जंग लगी आरी थी जिससे वो अपने एक पैर को काटने की कोशिश कर रहा था।
पर वो अपने पांव को काट क्यों रहा था??
उसका पैर रेल की दो पटरियों के बीच फँस गया था।
लेकिन कैसे?
वह बार-बार अपने पांव को रेल की पटरियों के बीच घुसेड़ कर निकालने की क्रिया से रोमांचित हो रहा था कि राजधानी एक्सप्रेस के आने का ग्रीन सिग्नल होते ही पटरियां आपस में कस गई और वही हुआ जिसकी उम्मीद की जा सकती थी।
पर इतनी रात गये वो इस पुल पर कर क्या रहा था?
रेलवे का पुराना पुल जिन स्तंभों पर खड़ा था उसकी नींव में शायद किसी जंगली जानवर ने रात गुजारने के लिये एक खोह बना डाली थी जो पिछले 1 महीने से उस मानव के लिये, रात गुजारने हेतु, एक गर्म बसेरा बना हुआ था।
इस कंपकंपाती ठंड में वो खोह काफी गर्म रहती थी।
क्या वह पाँव काटने में कामयाब हो पायेगा?
या
राजधानी एक्सप्रेस से टकरा कर माँस के लोथड़ों में बदल जायेगा?
इसका उत्तर वाकई में काफी विचित्र है।
उसके साथ वही होगा जो उस वक्त के लिये पहली बार, लेकिन 5 मिनट आगे के भविष्य के लिये कई बार हो चुका था।
इस जटिलता को समझने के लिये हमें 15 मिनट पीछे जाकर फिर से श्रृंखला बद्ध तरीके से यहाँ तक पहुँचना पड़ेगा।
*************ठीक 15 मिनट पहले******************
समयः- रात के ठीक 2:10 मिनट
मौसमः- जनवरी का कोहरे से भरा हुआ, 5°C के आसपास का तापमान
स्थानः- सूनसान रेलवे पुल के ठीक नीचे, स्तंभों के बीच बनी एक गर्म खोह,
'ठकक्'.....'ठठक्'....'ठकक्'.....'ठठक्'....
अभी-अभी एक रेलगाड़ी पुल के ऊपर से गुजरी थी।
पुल लोहे का बना हुआ था इसलिये शोर बहुत ज्यादा था।
खोह के भीतर हलचल हुई।
एक साया बाहर निकला।
नंगे बदन।
वो ज़िन्दा कैसे था?
इस पर कोई बहस नहीं।
क्योंकि सम्भावना हो सकती थी।
सिर उठाकर उसने ऊपर पुल की ओर देखा।
ध्यानाकर्षण के लिये कुछ तो था।
कोई चमकती हुई चीज।
धुप्प अंधेरे में उसकी तरफ बढ़ना स्वाभाविक था।
सीढ़ियों के सहारे ऊपर चढ़ता हुआ कुछ क्षणों में उस रहस्यमय चीज के करीब था।
ये एक घड़ी थी जिसका रेडियम वाला डायल काफी तेजी से चमक रहा था।
उसने उसे उठाया, उलट-पलट कर देखा।
कई सारी सम्भावनाओं में से एक सम्भावना के तहत उसने उसमें अपनी हथेली घुसा दी।
"आईSSSSS...."
उसकी कलाई पर कुछ चुभा।
घड़ी खुद ब खुद उसकी हथेली पर कस गई।
'जिऊSSSSSSS....'
घड़ी के भीतर एक कम्पन शुरू हो गया।
जैसे कोई मोटर बहुत तेजी से घूम रही हो।
कुछ ही पलों में उसके शरीर का तापमान बढ़ने लगा।
जनवरी की कंपकंपाती ठण्ड में भी उसके बदन से पसीना चूने लगा।
कुछ तो अजीब था।
शायद वो घड़ी।
वह अपने खोह की तरफ वापस लौटने के लिये आगे बढ़ा ही था कि उसका पैर लोहे की पटरियों से छू गया।
लोहे की ठण्डी पटरियों ने उसके शरीर से ऊष्मा को जैसे ही सोखा उसे सनसनी का अहसास हुआ।
वो बार-बार रोमांचित होकर इस क्रिया को दुहराने लगा।
ठीक तभी ग्रीन सिग्नल हुआ और पटरियां आपस में चिपक गई।
'कड़कSSSSS.....'
हड्डी टूट चुकी थी।
'आहSSSSS.......'
चीख निकलना तय था।
संयोग से उसकी कमर से एक रस्सी लिपटी हुई थी।
जिससे निम्न चीजें लटक रही थी।
एक प्लास्टिक की खाली बोतल,
एक पुराना चाकू, भतराया हुआ,
एक जंग लगा आरी का टूटा ब्लेड,
और भी कुछ।
शायद ये उसके लिये उपयोगी वस्तुयें थीं।
पहले उसने चाकू से कोशिश की।
लेकिन धार न होने से आरी का इस्तेमाल करना पड़ा।
पागल होने के बावजूद मरने का खौफ उसमें था।
पैर काटने की कोशिश में गुजरे 3 मिनट बाद.......
******************एक्सीडेन्ट होने से 1 मिनट पहले**********************
समयः- रात के ठीक 2:29 मिनट
मौसमः- जनवरी का कोहरे से भरा हुआ, 5°C के आसपास का तापमान
स्थानः- राजधानी एक्सप्रेस का इंजन रूम,
इंजन में जल रही पीली रोशनी में भाप के कुछ रेशे तैर रहे थे।
जो काफी के उस मग की सतह से उड़ रहे थे जो इंजन चालक के हाथों में था।
काफी की सतह थरथरा रही थी।
'टिक्'
चालक की उँगलियों ने किसी बटन को दबाया।
सामने के शीशों पर लगे वाइपर थोड़ा तेज हो गये।
शीशों पर छाई आर्द्रता छटने लगी।
उसी के अनुपात में उसकी आँखों की पुतलियाँ धीरे-धीरे फैलने लगी।
दूसरे हाथ ने काफी के मग से उड़ रही उस भाप को साफ किया जो शीशों पर जाकर चिपक गई थी।
धुँधला दृश्य और स्पष्ट हुआ।
हाथ किसी एक बटन पर जाकर हरकत करने लगे।
'पोSSSSSSSS....'
'पोSSSSSSSSS.....'
"शायद कोई जानवर है?...."
चालक के मन की शंका उसके होंठों पर बुदबुदाहट बन कर फूटी।
उसे ऐसा क्यों लगा?
कोहरा बीच में जो था।
'भड़ाकSSSSSSSSSS'
****************एक्सीडेन्ट होने से 30 सेकेण्ड पहले*******************
समयः- रात के ठीक 2:29:30 सेकेण्ड
मौसमः- जनवरी का कोहरे से भरा हुआ, 5°C के आसपास का तापमान
स्थानः- सूनसान रेलवे का पुल,
पैर काटते-काटते उसके उस हाथ से धुआँ सा निकलने लगा था जिसकी कलाई में घड़ी बंधी हुई थी।
कोहरे की पर्तों को भेदती हुई राजधानी एक्सप्रेस की पीली रोशनी में पहली बार उसकी नग्नता दृष्टिगोचर हुई।
उसमें इतनी भी हिम्मत नहीं बची थी कि सिर उठाकर आ रही अपनी मौत को देख सके।
'पोSSSSSSSSS'
'पोSSSSSSSSS'
उसने पूरी ताकत लगाकर आरी को अपने पैरों में घुसा दिया-
'भच्च्....'
'आहSSSSSSS'
खून का फव्वारा सा फूटा।
लेकिन असहनीय दर्द के अहसास ने शरीर के पोर-पोर को दहला दिया।
वह कटे पैरों से उठ खड़ा हुआ।
लेकिन.....
ठीक तभी,
'भड़ाकSSSSSS'
उसका धड़ लोथड़ों में बदल चुका था।
'धप्प्....'
घड़ी वाला हाथ पुल के नीचे सूखी जमीन पर जा गिरा।
जैसे ही उस घड़ी में ठीक 2 बजकर 30 मिनट हुये वैसे ही वो गायब हो गया।
लेकिन पुल पर कटी-फटी लाश अभी भी थी।
पर आखिर वो हाथ गया कहाँ?
*************************************************************
अपराध अनुसंधान केन्द्र का मनोवैज्ञानिक विभाग,
नई दिल्ली,
ये किसी विशाल लैक्चरर रूम जैसा था।
'किस्'-'किस्स्'
आवाज वाइट बोर्ड पर मारकर के घसीटने की थी।
मारकर तब तक गतिमान रहा जब तक की एक '?' नहीं आ गया।
"इस प्रश्न का जवाब आप सभी को अपने पेपर शीट पर लिखना है और वो भी संक्षेप में......आपके पास सिर्फ 5 मिनट का समय है। जो की अब शुरू होता है...... "
'टिप्प्'
समीर ने टाइमर को ऑन कर दिया।
कमरे में 30 लोग से अधिक थे। सभी रेप के जुर्म में अपनी आधी सजा काट चुके थे।
इस वक्त इन सभी पर एक मनोवैज्ञानिक परीक्षण किया जा रहा था।
सी.आर.सी को जो सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौँपी गई थी वो थी आधी सजा काट चुके अपराधियों का मानसिक मूल्यांकन।
ऐसे अपराधियों को सी.आर.सी. के परीक्षण के लिये चुना जाता।
जहाँ रोज उन्हें मानसिक बदलाव लाने के लिये शिक्षित किया जाता।
साथ ही उनकी मानसिक अवस्था को पढ़ने के लिये उनका टेस्ट लिया जाता।
हर हप्ते होने वाले इस टेस्ट में उन्हें कुछ नम्बर दिये जाते थे। जो फाइनल यानि मुख्य टेस्ट के बाद प्राप्त होने वाले अंकों को मिलाकर उन्हें ग्रेड में बदल दिया जाता था जिससे ये तय किया जाता कि किसकी बाकी की सजा माफ कर दी जाय और किसकी सजा को कम करके उसे पुनः जेल में वापस भेज दिया जाय।
लेकिन सजा माफ करने या कम करने का अंतिम अधिकार सी.आर.सी से जुड़े न्यायिक विभाग के मुख्य न्यायधीश को ही था। जो समानांतर में सुप्रीम कोर्ट के भी न्यायिक विभाग से जुड़े रहते थे।
लेकिन ये बात इन लोगों को नही पता थी।
इनमें से कुछ अपराधी ऐसे थे जो सीनेट-यक्स के लिये काम कर चुके थे।
सी.आर.सी में गहन अनुसंधान के बाद मीडिया में हर हप्ते छपने वाले अखबारों और टी.वी. में अपने शोध के निष्कर्षो का खुलासा करती थी।
सी.आर.सी. की स्थापना के कुछ साल बाद ही इस पर एक टी.वी. सीरियल भी बना। जो काफी पौपुलर हुआ।
सी.आर.सी में हो रहे शोध से अपराध होने के निम्न मुख्य कारणों का पता चला-
1. शिक्षा का अभाव
2. पैसे या संसाधनों का अभाव
3. कामुक संवेदनशीलता
4. जातिवाद या धर्मवाद
5. अहंकार का टकराव
6. कानूनी जानकारी का अभाव
कुछ लोग शौक़िया अपराधी बनते हैं और कुछ डर की वजह से,
कभी-कभी संयोग से भी अपराध हो जाते हैं, अनजाने में।
सी.आर.सी. ने अपराधियों को तीन भागों में बाँटा-
1. अशिक्षित लोगों द्वारा किया गया अपराध
2. शिक्षित लोगों द्वारा किया गया अपराध
3. बाल अपराध
इसके अलावा हो सकने वाले अपराधों को 2 भागों मे बाँटा गया-
1. शारीरिक क्षति
2. मानसिक क्षति
'ट्रिन'-'ट्रिन'
अलार्म 5 मिनट पूरा हो जाने पर चिल्ला उठा।
"स्टॉप राइटिंग....."
सभी ने लिखना बंद कर दिया।
"चलिये शुरूआत करते हैं मिस्टर यशवंत से....."
यशवंत नामक एक व्यक्ति खड़ा हुआ।
"प्लीज अपना जबाब पढ़ें....."
पर सवाल क्या था?
"वो कौन सी चीज है जो आपको अपराध करने के लिये उकसाती है और क्यों?....."
"सबके सामने पढ़ना जरूरी है....."
वह थोड़ा हिचकिचाया।
"जब तक हम खुद को अपराध करने के लिये उकसाने वाली भावनाओं को दूसरों से शेयर नहीं करेंगे तब तक वो हमारे भीतर रहकर हमें अपराध करने के लिये उकसाती रहेंगी इसलिये आपको अपना जबाब सबके सामने पढ़ना ही होगा।"
यशवन्त हिचकिचाते हुये पढ़ने लगा।
"लड़कियों के बदन दिखाऊ कपड़े मुझे उनके साथ कुछ बुरा करने के लिये उकसाते हैं....."
"क्या आपका जबाब वैसा ही है जैसा कि आपने लिखा है?"
"ज...जी हाँ.."
"प्लीज अपनी पेपर शीट यहाँ तक लेकर आइये...."
पेपर शीट को लेकर वह समीर तक पहुँचा।
मुआयना करने के बाद-
"आप फिर से अपनी जगह जाईये और हर एक शब्द पढ़िये जो आपने लिखा है...बिना किसी संकोच और झिझक के..."
वह वापस अपनी जगह पहुँचा।
अपने चारों ओर बैठे लोगों पर दृष्टिपात किया और संभलते हुये पढ़ने लगा-
"जब भी किसी लड़की को मै जीन्स या स्कर्ट में देखता हूँ तो मेरा मन करता है कि मैं उसका किडनैप करके किसी जगह ले जाऊं और तब तक उनके साथ मनमानी करूं जब तक मेरा मन न भर जाय.."
"कितने लोगों के अंदर इस तरह की भावनाएं उठती हैं कृपया अपना हाथ ऊपर करें?"
पहले तो एक दो लोगों ने ही हाथ खड़े किये लेकिन धीरे-धीरे सब के हाथ खड़े होते चले गये।
"यानि कि सभी.....ये देखकर मैं बिल्कुल भी हैरान नहीं हूँ बल्कि अब मैं जो करने जा रहा हूँ वो देखकर आप लोग जरूर हैरान हो जायेंगे।"
फिर समीर ने कुछ ऐसा ही किया।
पर क्या?
समीर का एक हाथ बाकी सब की तरह हवा में खड़ा था।
आखिर क्यों?
"ये कोई ऐसी भावना नहीं है जो आपको अपराधी बनाती है बल्कि ज़िन्दा रहने के लिये दो मुख्य वजहों में से, ये दूसरा है। प्रधान रूप से इंसानों की दो ज़रूरतें हैं....प्लीज आप सभी लोग अपना हाथ नीचे कर लीजिये...."
सबके हाथ नीचे आ चुके थे।
"पहली- खुद को ज़िन्दा रखना और दूसरी- खुद को ज़िन्दा रखते हुये भविष्य के लिये अपनी पीढ़ी को आगे बढ़ाना। इसमें से जब कोई वजह खुद हमारे अस्तित्व से बड़ी लगने लगे, दूसरे शब्दों में हमारे नियंत्रण से बाहर हो जाय, तब हम अपराध करते हैं। ऐसे में जरूरत, हमारी लत या मजबूरी बन जाती है।"
तभी कोई बोल पड़ा-
"सर कुछ-कुछ समझ में आया....."
"मैं व्यवहारिक तरीके से आपको समझाता हूँ। खुद को ज़िन्दा रखने के लिये जो सबसे मूल जरूरत है वो है भोजन यानि खाना, जिसके लिये हम मेहनत करते हैं। अपनी बुद्धि, कौशल और शक्ति के अनुसार। चाहे आप मज़दूरी करें या इंजीनियर डाक्टर बने। मूल कारण है रोटी, कपड़ा और मकान। जिसके लिये ज्यादातर अपराध होते हैं। जब ये ज़रूरतें आप पूरी कर लेते हैं तब अगली जरूरत होती है सेक्स, शादी और संतान....ज्यादातर लोग इन्हीं ज़रूरतों के तहत अपनी जिन्दगी गुजार देते हैं। अमूमन इन दोनों चीजों से संतृप्त रहने वाले लोग अपराध नही करते क्योंकि उनके पास अपराध करने कि कोई वजह नहीं होती। लेकिन जो व्यक्ति इन दोनों चीजों की चाह जरूरत से ज्यादा करने लगता है तब अपराध होने की सम्भावना प्रबल होती है। पहली जरूरत के बेकाबू हो जाने से सबसे बड़ा अपराध होता है - भ्रष्टाचार और दूसरी जरूरत जब लत बनकर बेकाबू हो जाती है तब होता है सबसे बड़ा क्राइम जिसे हम कहते हैं- रेप यानि बलात्कार। दोनों चीजें और घातक हो जाती है जब उसमें मर्डर भी शामिल हो जाता है। मैं आप लोगों से ये जानना चाहूंगा कि यहाँ पर मौजूद कितने लोगों पर रेप और मर्डर, दोनों का आरोप है।"
आठ लोगों ने अपने हाथ ऊपर खड़े कर दिये।
"इसीलिये मैंने आप लोगों को बोलने से पहले लिखने के लिये कहा था क्योंकि लिखते वक्त हम सबसे ज्यादा सहज महसूस करते हैं लेकिन जब बोलने की बारी आती है वो भी सबके सामने तो हम अपनी व्यक्तिगत सोच को सांकेतिक रूप में या संक्षेप में व्यक्त करने की कोशिश करते हैं। इसलिये जो भावनाएं हमें ज्यादा परेशान करें, उन्हें शब्दों में लिखकर व्यक्त करने से, हम अपने अंतर्मन में उठने वाले गलत विचारों से छुटकारा पा सकते हैं और लिखी हुई चीजें हमारी खुद के लिये व्यक्तिगत साहित्य बन जाती है। जिसे हम जितनी बार पढ़ेंगे, हमारा मन उतनी बार तनाव रहित महसूस करेगा। विचार जब केन्द्रित होते हैं तो घातक होते हैं लेकिन जब शब्दों का रूप लेकर पृष्ठों पर फैल जाते हैं तो कलात्मक हो जाते हैं। इसीलिये हमें किसी भी गलत विचार को अपने मन में इकट्ठा नहीं होने देना चाहिये....."
"पर सर आपने क्यों हाथ खड़ा किया था? क्या आपके मन में भी रेप करने की भवना पैदा होती है?"
ये प्रश्न कम और व्यंग्य-बाण ज्यादा था।
माहौल में कुछ कह-कहे फूट पड़े।
जब माहौल शान्त हो गया तब समीर ने बोलना शुरू किया-
"वैसे तो ये भावना थोड़ी बहुत कमी-बेशी के साथ हम सब में होती है, किसी हद तक ये इस बात का संकेत है कि हममें एक पारिवारिक जीवन जीने की इच्छा है।.....लेकिन यहाँ पर एक प्रश्न ये उठता है कि सेक्स कर चुकने के पश्चात क्या आप उसे छोड़ देंगे या मार देंगे।..."
"नहीं सर....मारने की इच्छा नहीं रहती...."
"लेकिन सेक्स हो जाने के पश्चात पुलिस द्वारा पकड़े जाने या समाज के सामने खुलासा हो जाने का डर इंसान के भीतर ये इच्छा पैदा कर देती है। लेकिन अगर आप मार देंगे तो ये एक हार्ड क्राइम बन जायेगा। रेप करके मार देने या रेप करने, दोनों ही सूरतों में बड़ी सजा होती है। शायद इसीलिये रेप जैसा अपराध करने के बाद, मार देने का निर्णय लेना आसान हो जाता है।..."
"सर, मैं सच में इस चीज से खुद को आजाद कराना चाहता हूँ।.....क्या ऐसी कोई गोली नहीं हैं जिसे खाने के बाद ये सब करने की इच्छा ही न पैदा हो।....."
"बेशक ऐसी दवायें हैं जो आपके दिमाग में बनने वाली कामोत्तेजक रसायनों को खत्म कर सकती हैं लेकिन ये कोई हल नहीं। क्योंकि सेक्स एक वजह है जो हमें क्रियाशील रखता है। काम करने के लिये प्रेरित करता है। अगर आप सेक्सुअली न्यूट्रल हो जायेंगे तो शायद आप में जीने की लालसा ही खत्म हो जाय। क्योंकि तब भावनाओं की संवेदनशीलता समाप्त हो जायेगी। सुख-दुःख.....सब का अहसास खत्म हो जायेगा।"
"तो इसका हल क्या है?"
"सामाजिक स्तर पर जो सबसे सरल हल मौजूद है वो है- शादी। जो न सिर्फ आपकी कामोत्तेजना को नियंत्रित करती है बल्कि एक जिम्मेदारी भी सौपती है।......आप किसी का रेप अकेले में करते हैं इसलिये उस लड़की की जिम्मेदारी आप पर नहीं होती। लेकिन जब आप उस लड़की से सामाजिक तौर पर शादी करते हैं तो उसका साक्ष्य पूरा समाज बनता है। अतः वो आपकी एक जिम्मेदारी हो जाती है। सुहागरात में कोई पति सेक्स के बाद अपनी बीवी को क्यों नहीं मार देता? क्योंकि शादी करने के बाद समाज आपको उस विशेष स्त्री के साथ सेक्स करने का सार्वजनिक और क़ानूनन अधिकार देता है। इसलिये सेक्स करने के बाद विरक्ति की अवस्था में अपराध बोध नहीं पैदा होता।....जिन चीजों को हम छुपाते हैं वहीं हमें अपराध करने पर मजबूर करती हैं......और जिन चीजों को हम सबके सामने स्वीकार करते हैं वो हमारी ताकत, हमारी प्रेरणा बनती हैं। "
"पर हमारे जैसे अपराधियों से कोई लड़की शादी क्यों करेगी सर?..."
"शादी कोई बुरी चीज नहीं है इसलिये विकल्प हमेशा मौजूद होते हैं।....अगर आप सजा काटने के बाद शादी करके एक जिम्मेदार नागरिक बनकर एक अपराध रहित जीवन जीना चाहते हैं तो बेशक हमारी संस्था यानि सी.आर.सी. आपकी मदद करेगी। ऐसी हालत में मिस्टर यशवन्त कम से कम दुबारा रेप करके जेल आने की जरूरत नहीं पड़ेगी। "
"पर सर उन लोगों का क्या हल है जो शादीशुदा होने के बावजूद रेप करते हैं जैसे की हमारे जैसे लोग...."
"हाँ ऐसे भी कुछ लोग होते हैं जो अपने वैवाहिक जीवन से त्रस्त आ जाते हैं या जिनकी अपनी बीबियों से नहीं पटती। क्योंकि सेक्स करने की बारंबारता से बीवी के साथ सेक्स की इच्छा भले ही न हो लेकिन किसी दूसरे के साथ करने की दबी-दबी भावनाएं जरूर पनपती हैं। कानूनी स्तर पर इसका भी एक हल है। विरक्ति की अवस्था में तलाक लेकर किसी और के साथ शादी कर लेनी चाहिये या पढ़े-लिखे लोग बिना शादी किये भी लिव इन रिलेशनशिप में रहते हैं जहाँ पर सम्बंध सामाजिक स्तर पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत समझौते पर टिका होता है। इसलिये इस तरह के संम्बधों में अधिक फ़्लैक्सिबिलिटी यानि व्यापकता होती है। लेकिन इस तरह के रिश्ते की बहुलता 20 से लेकर 35 साल के लोगों के बीच ही देखी गई है क्योंकि 35 के बाद हर किसी के भीतर संतान की चाह पैदा हो जाती है। भले ही बुढ़ापे के डर से लेकिन उस वक्त शादी करना कानून सही फैसला होता है। लेकिन जब इंसान समाज के डर से तलाक न लेकर किसी स्त्री से सेक्सुअल रिलेशन बनाता है तो चूंकि ये सम्बंध छुपे होते हैं अतः अपराध होने की सम्भावना अधिक होती है। छिपी हुई चीजों में इंसान तत्काल और घातक फैसले लेता है। यदि किसी से रिश्ता खत्म करना है तो आप उसे छोड़ देंगे या मार देंगे। छोड़ देने पर यदि वह इस आघात को नहीं सह पाया तो वो खुद को मारने कि कोशिश कर सकता है या आप पर पलटवार हो सकता है।.........पढ़े-लिखे और साधन सम्पन्न लोग सेक्सुअली बहुत ओपन और मैच्योर्ड होते हैं इसलिये कुछ लोग पार्टनर की अदला-बदली भी कर लेते हैं।............चूंकि इसमें चार लोग शामिल होते हैं इसलिये अपराध होने की गुंजाइश नहीं होती।......लेकिन इस तरह के फैसले आपसी समझदारी पर निर्भर करते है और वो तभी डेवलप होगी जब आप हर बात अपने पार्टनर से शेयर करेंगे। उसे भी सेक्सुअली खुद की तरह ओपन करेंगे।...फिर आप आपसी सलाह से सेक्सुअल लाइफ में फ़्लैक्सिबिलिटी ला सकते हैं।....लेकिन कुछ भी करें छिपा कर नहीं।...सेक्स बुरा नहीं है लेकिन छुपाना इसे घातक बना देता है। "
"सर् ऐसा कोई सिस्टम नहीं कि शादी-तलाक के झंझट में पड़ने से ही मुक्ति मिले......जिसका जिसके साथ मन हो तब तक रहे जब तक मन न भर जाय फिर किसी और के साथ, ताकी आदमी अपनी बुद्धी, सेक्स में न बरबाद करके कोई ढंग का काम करें...."
"बेशक....निकट भविष्य में समाज में ये फ़्लैक्सिबिलिटी मौजूद होगी। क्योंकि इस फ़्लैक्सिबिलिटी की वजह से क्राइम बहुत कम हो जायेगा।.....कुछ देशों में तकरीबन ऐसा है भी....इसलिये वहाँ के लोग इतनी तरक्की कर लेते हैं।....जरूरत पड़ने पर समाज के नियम भी टूटते हैं और बदलते हैं और ये बदलाव शिक्षा के स्तर और विज्ञान के विकास पर निर्भर करता है।..."
ठीक तभी-
'बिप्प्'-'बिप्प्'
तभी समीर के मोबाइल पर एक यस.यम.यस. आया।
"जस्ट अ मिनट.."
यस.यम.यस. पढ़ने के बाद,
"ओ.के......बाकी लोग अपनी शीट यहाँ पर जमा कर दें.....कल हम इस विषय पर आगे चर्चा करेंगे ।"
इसी के साथ समीर ने क्लास छोड़ दिया।
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अपराध अनुसंधान केन्द्र का सूचना कक्ष,
नई दिल्ली।
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