आदत तो बन गई दर-व्-दर भी न रहता,
जो बे-खयाले-दीदारे-दिलबर भी न रहता।
जो बे-खयाले-दीदारे-दिलबर भी न रहता।
तुमने तराश कर मुझे हीरे की शक्ल दी,
घिस-घिस के वर्ना मैं पत्थर भी न रहता।
घिस-घिस के वर्ना मैं पत्थर भी न रहता।
गुजरती जो मुझ पर थी जानता था मैं ही,
सुनता क्या कोई जब मयस्सर भी न रहता.
सुनता क्या कोई जब मयस्सर भी न रहता.
सुबहो-शाम मांगने पे भी हालत ये हो गई,
भरता न कासा खाली अक्सर भी न रहता।
भरता न कासा खाली अक्सर भी न रहता।
मेरी सादगी ने ही मुझे मजलूम कर दिया,
बढ़ते न जुल्म गर यूं बेखबर भी न रहता।
बढ़ते न जुल्म गर यूं बेखबर भी न रहता।
एक मुर्दा जिस्म की कैद में रूह को लेकर,
भटकता इस कदर कोई रहबर भी न रहता।
भटकता इस कदर कोई रहबर भी न रहता।
लिखते थे आप गाता था मैं बस दर्द एक था,
जज्बात न मिलते तो रहगुजर भी न रहता।
जज्बात न मिलते तो रहगुजर भी न रहता।
इनायत ही रही जो मुझे पहचान मिल सकी,
बदनाम तो मैं वरना इस कदर भी न रहता।
बदनाम तो मैं वरना इस कदर भी न रहता।
तकदीर का लिखा न मगर बदलता 'जी '
हालात ये न होते तू सुखनबर भी न रहता।
हालात ये न होते तू सुखनबर भी न रहता।
दर-व्-दर = निरुद्देश्य भटकना, बे-खयाले-दीदारे-दिलबर = प्रेमिका-दर्शन के विचार से अज्ञान, मयस्सर = उपलब्ध, कासा = भिक्षा-पात्र/कटोरा, मजलूम = सताया हुआ, रहबर = मार्गदर्शक, जज्बात = भावना, रहगुजर = मार्ग/रास्ता, इनायत = कृपा, सुखनबर = शायर/कवि.