शनिवार, 1 दिसंबर 2018

जाने कहाँ छुपा बैठा है आवारा चाँद मेरा

खामोशियाँ तुम्हारी सज़ा सी लगती है
तुम बिन जीना बस सज़ा सी लगती है

तुम चुप हो दम घुटा जाता है सीने मे
पलकें भरी सावन की घटा सी लगती है

बोझिल सी शाम वजूद पे छाने लगी अब
फूलों से खेलती हवा बेवजह सी लगती है

जाने कहाँ छुपा बैठा है आवारा चाँद मेरा
सूना है आसमां चाँदनी खफ़ा सी लगती है

चिरांग तो रौशन हुए हर घर के आँगन में
मन के उजाले से रौशनी लापता सी लगती है

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...