शुक्रवार, 7 दिसंबर 2018

माना के मुहब्बत है संगीन खता तो

दामन की तेरे शोख हवा चाहिये मुझे
जिंदा हुं जिन्दगी का पता चाहिये मुझे

लहराते गेसुओं का नशा चाहिये मुझे
जीना है तो जिने की वजहा चाहिये मुझे

तु चाहिये न तेरी वफा चाहिये मुझे
रहे गम मे बस दीदार तेरा चाहिये मुझे

न होगा मरीज़े दिल को बस आराम दवासे
तेरे हसीन लब से दुआ चाहिये मुझे

माना के मुहब्बत है संगीन खता तो
संगीन इस खता की सजा चाहिये मुझे

दुनिया की तमन्ना है न जन्नत की आरजू
तेरी गली की बादे सबा चाहिये मुझे

उम्मीद के जुगनु रहे रहबर मेरे शब भर
अब शब ए मुसलसलकी सुबहा चाहिये मुझे

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...