उस पार मुन्तजिर है मुहब्बत का इक शहर
पर इक शर्त है के दर्दे दिल का दरिया पार कर
हवा को लग गई है शायद उसके आने की खबर
नई उम्मीद से सजे क्युं न मौसमों के पर
अभी तय करना है बड़ी दूर तलक दिलका सफर
खाक बनकर ए सांस राहे तमन्ना मे बिखर
बुलंदियों से तुझे दिल नजर न आयेगा
दिल ये नापना है तो हर छत से अना की उतर
सच धुल मे अटा है आईने के सामने
दिल फरेब झूठ आया है करीने से सज संवर
प्यार उसको बना देगा हयात का प्याला
वक्तके हाथों मे भले ही हो प्याला ए जहर
कल उसकी ठोकरों मे पडे होंगे कई ताज
जो आज चल रहा है बरहना पा नंगे सर
फुल बनकर के इक रोज वही खिलते है
क्या पता कब डस ले उम्र की नागन
है वक्त तो देख ले आ चांद का मंजर