जीस्त है बस मरमरी दो बाहों के इक हार तक
कामयाबी नाकामयाबी सिमटी नही जीतहार तक
मेरी तनहाई की जंग जब तेरी ख्वाईश से हुई
छत पे बैठा बैठा मै उडा चांद के उस पार तक
मेरे लिये जन्नतकी हद सदियोंसे है इस ही तरहा
होकर मेरे दिलसे शुरु फैली हुई दिलदार तक
झूठको बैठे बिठाये मिल गये ग्राहक कई
सच पहुंच ना पाया दुनिया मे कभी खरीददार तक
रोज खाली हाथ अपने होश मे आता हुं मै
रोज आशिकी मे पर फिर जाता हुं बेदार तक
मुझे क्या पता के है कहांतक ये सफर अहसासका
इनकार तक लगता है लगता है कभी इकरार तक
कामयाबी नाकामयाबी सिमटी नही जीतहार तक
मेरी तनहाई की जंग जब तेरी ख्वाईश से हुई
छत पे बैठा बैठा मै उडा चांद के उस पार तक
मेरे लिये जन्नतकी हद सदियोंसे है इस ही तरहा
होकर मेरे दिलसे शुरु फैली हुई दिलदार तक
झूठको बैठे बिठाये मिल गये ग्राहक कई
सच पहुंच ना पाया दुनिया मे कभी खरीददार तक
रोज खाली हाथ अपने होश मे आता हुं मै
रोज आशिकी मे पर फिर जाता हुं बेदार तक
मुझे क्या पता के है कहांतक ये सफर अहसासका
इनकार तक लगता है लगता है कभी इकरार तक