अभी अभी बस सांझ ने आकर घेरा था मुझको ...सूरज मध्यम-मध्यम रौशनी लेकर विदा ले चुका था ...सामने बहती नदी पर लालिमा आ गयी थी ..जो जल्द ही अँधेरे में विलुप्त हो जाने बाली थी |
मैं बालकनी में खडा हाँथ में चाय के दो कप थामे हमेशा की तरह ..यहाँ से गुजरने बाली हवाओं में से तुम्हे मेहसूस करता हुआ तूमसे मिलने के इंतज़ार में लगा हुआ था ...ये दिन और रात के मिलन के बाद शुरू होने बाला मेरा सफ़र निश्चित ही किसी दिन मुझे आज के सामाजिक परिवेश से अलग कर देगा....लेकिन में भी तो तुमसे मिले बिना नही रह सकता ...मेरी हर कहानी ..मेरी जिन्दगी की हर किताब ....तुम्हारे जिक्र के बिना या बिना तुम्हारे पूरी हो जाए ये तो सम्भव ही नही है |
इन सांझ की हवाओं में तुम्हारी खुशबु बसी हुयी है जो हमेशा मेरे इर्द गिर्द ही रहा करती हैं...मै हवा की छुंअन से ही तुम्हे मेहसूस कर ...तुम्ही में खो जाना चाहता हूँ..
अगर तुम और तुम्हारी यादें इस घर में न होती तो ये मेरे लिए किसी भी काम का नही था ....शायद मेरे रहने के लायक भी नही ....
आज मिलने जा रहा हूँ खुद से ,इक बार फिर से अपने दिनों को जीना चाहता हूँ ..जा रहा हूँ एचबीटीआई के केम्पस में वापस पुराने दिनों को याद करने के लिए ...इसलिए तुम्हे फिर बुलाने आया हूँ साथ चलने के लिए ...
क्यूंकि तुम्हारे बिना तो ये कैम्पस भी अधूरा ही हैं न |
लोग बदल चुके हैं ,वहुत सा स्टाफ भी बदल गया है ...लेंकिन आज भी वो प्राचीरें जिन के साहारे बैठ कर किये गये वादे आज भी जीवित खड़े हुए हैं ...बस थोड़े से पुराने हो गये हैं ...आज भी वो सारे ठिकाने ज्यों के त्यों हैं ...जैसे हमारे समय में हुआ करते थे ...|
मैं पिछले दिनों एक कार्यक्रम करने गया था वहां ...मुझे वहुत रूखापन सा लगा तुम्हारे बिना... सारी दीवारे निर्जीव सी जान पड़ी ...होस्टल बाले कमरे बदहवास नज़र आये ...क्लास रूम भरे हुए थे यकीन सवाल कर रहे थे .....मेरे अकेले आने का ..सब कारण जानना चाहते थे ..
शायद मुझे अकेला देखकर उन्होंने खुद को निर्जीव सा बना लिया है ..उस दिन मुझे नही लगा की इसी परिसर से मेरा इतना घहरा और करीबी नाता रहा हैं ...ऐसा लगा जैसे मेरा तिरिस्कार किया गया हो ...ऐसा लगा जैसे मुझ पर हंस रहे हो ..वहां के हालात ..और सबसे बड़ी बात उस दिन तुम भी नही थी हवाओं में .....
जो गले लगाने को दौड़ पड़ता हो..जहाँ पैर रखते ही अतीत जीवित हो वापस से गुजरने लगता हो ...सारी यादों को सजाकर रखने बाला परिसर वीरान था उस दिन ....क्यूंकि मेरे साथ तुम नही थी ..............
आज चलना साथ में तुम ...उन्हें दिखाना है की तमने सिर्फ दुनियां छोड़ी है मेरा दामन नही ...मेरा साथ नही .....मेरा प्यार नही .....मेरा दिल नही आर हाँ .................मेरा हाँथ नही ..
इन्हें बताना चींख चींख कर कि नही छूटा है वो बंधन ..नही टुटा है वो रिश्ता ...जिसके गवाह थे यहाँ के सारे लोग ...यहाँ की एक एक चीज ...
बोलना उनसे आज भी हांथों में हैं हाँथ .....नही छूटा है साथ .....और न छूटेगा ....कमसे कम इस जन्म तो हरगिज नही ...|
अच्छा एक बात और .. मेरा इंतज़ार करना ...मेरे लिए जगह बनाकर रखना ...मैं भी तुम्हारे साथ ...उसी पीपल के पेड़ पर रहना चाहता हूँ ....यहाँ से बैठ कर देखेगें नवीन अंकुरित होती प्रेम कहानीयों को ....उनको जियेंगे ..और खोजेंगे खुद को उनके अंदर .....मैं कागज कलम लेकर आऊंगा ....लिखूंगा और फिर तुम्हें सुनाऊंगा ....तुम्हें पसंद हैं न मेरी कवितायेँ ....लिखूंगा ...फिर से लिखूंगा ....लेकिन सिर्फ तुम्हारे लिए ....उसी पीपल के पेड़ पर ...तुम्हारी गोद में सिर रखकर ......तुम्हारी उंगलियों का बालों में स्पर्श को मेहसूस करते हुए ....लिखूंगा एक प्रेम कहानी जो सैंकड़ो सालों तक हमें जीवित रखेगी ||
लवयु हमेशा
तुम्हारा