पांच साल बाद
अधूरी कहानी ..
अधूरी कहानी ..
भेडिये – ३
एक युवा,मुस्कुराती
अठखेलियों में व्यस्त रहने बाले भविष्य के भारत की किसी न किसी रूप में बागडोर
सम्हालने बाली लड़की को रौंदकर /कुचलकर/मसलकर म्रत्यु के हवाले करके फैंक दिया गया
इंसानों की बस्ती की तरफ ...एक छोटी से परी को चीर फाड़ डाला था दरिंदों ने |दर्द से बिलखती .चींखती
,घुटती,ठण्ड से सिकुड़ती ...रात की कालिमा में मौत को मांगती |संघर्ष करती रही और
दामिनी हमेशा हमेशा के लिए असमान में समाहित हो गयी ..|
कुछ वक्त के लिए कुछ लोग
इंसान बनके उसके लिए आंगें आये ...एक भीड़ भी आई जिसमें छुपे हुए थे आदमखोर भेडिये
..लेकिन समय गुज़र गया और वो वापिस लौट गये अपनी मांदो में ...आज भी वो निकलते हैं
अक्सर दिन को रातों को ...किसी भी रूप में ..कभी कभी सगे सम्बन्धी बनकर और शिकार कर
ले जाते हैं किसी न किसी मासूम का ...
कमियां निगाह्बानो की
निगाहों में हैं ,शिकारियों की बंदूकों में हैं ,बिछाए गये जालों में और उन्हें
परोसा जाने बाला जहर भी असली नही है |बस इसीलिए ये भेडिये ज़िंदा हैं और रोज अपना
अपनी वासना की पूर्ति के लिए ..जाने लेने में व्यस्त है /...
आम जनता ने मांग की के भेदियों
को मार दो .खुद भेडियों ने मांग की भेडियों को मार दों... नर पिशाचों ने मांग की
कि भेडियों को मार दो ...लेकिन हुक्मरानों ने भेडियों को मारने के लिए भेडियों को
ही बंदूकें थमा दीं... ... अब रोज रात को आवाज आती है चैनलों पर बंदूक चलने की
...लेकिन सुबह मिलती है लाश किसी न किसी मासूम की ..और फिर कुछ नये भेडियों को बंदूकें
थमा दी जाती हैं और फिर होता है जो पिछले दिन हुआ था ..|
अब इंसानों के हाथ खाली हैं
...भेडियों के हाथों में बंदूके हैं और उन मासूमो के हाथों में कफ़न ...जिससे वो
अपनी अस्मत तो नही बचा सकती ..लेकिन उसे ओढकर खुद को काल के मुंह में जरुर समा
सकती हैं |
मासूमो की निर्वस्त्र देहों
को देखकर दिल करता है कि सविधान के पन्ने फाडकर इन्हें ढक दें क्यूंकि जो बचा नही
सकता कमसे कम उनके तन को ढक ही सकता है ....|