सोमवार, 13 अप्रैल 2020

सुन्दरता के रूपक बांधे ज़िन नयनो में रीत गये

सुन्दरता के रूपक बांधे
ज़िन नयनो में रीत गये
कितनी खुलकर खेली पीड़ा
घबराकर दिन बीत गये
मन का प्यासा हिरना दौड़ा
रेतीले मैदानों पर
पानी का धोखा खा खा कर
फिसल गया ढालानों पर
आह किसे मलना था कोमल
अंगों पर तपता चन्दन
अब न लिखे जायेंगे फिर से
बासंती के गीत नये
सुन्दरता के रूपक बांधे ज़िन नयनो में रीत गये
अरे बाबरी देह बन गयी
कागज की भंगुर नौका
छूँछे बादल में जा सकता
इन्द्रधनुष कब तक रोका
छलना का इतिहास अगर कुछ
बीती बातें दोहराये
इससे ही क्या कल के सपने
हारी बाजी जीत गये
सुन्दरता के रूपक बांधे ज़िन नयनो में रीत गये
रह जाने दो संदर्भों में
थोड़ा बहुत उदासापन
गोधूली क्या कम कर देगी
तिर आया जो वासापन
उफ यह झुरमुट के पीछे अब
कैसा खण्डित चांद उगा
एेसे ही क्या परिचय देते
बेगानों को मीत नये
सुन्दरता के रूपक बांधे ज़िन नयनो में रीत गये

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...