भूल की ,और हश्र क्या निकला ,
जिसको चाहा वो बेवफ़ा निकला ।
वक़्ते-आख़िर वो शब्द क्या निकला ,
मां कहा और या- ख़ुदा निकला।
एक उँगली उठाई थी उस पर ,
रू- ब- रू मेरे आइना निकला।
थे ख़यालों में तो कई चेहरे ,
द्वार खोला तो डाकिया निकला।
किस से उम्मीद साथ की करते ,
मुझसे अपना ही फ़ासला निकला ।
जिस ने लूटा था क़ाफ़ला लोगो ,
मुड़ के देखा तो रहनुमा निकला ।
उम्र का वक़्त से जो रिश्ता है ,
एक पानी का बुलबुला निकला।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें