मंगलवार, 13 अप्रैल 2021

जिसको चाहा वो बेवफ़ा निकला ..

भूल   की ,और   हश्र   क्या   निकला ,
जिसको  चाहा  वो  बेवफ़ा  निकला ।
 वक़्ते-आख़िर वो शब्द क्या निकला ,
मां   कहा   और   या- ख़ुदा   निकला। 

एक   उँगली   उठाई    थी   उस   पर ,
रू- ब-  रू    मेरे   आइना    निकला।

  थे    ख़यालों   में   तो    कई   चेहरे ,
द्वार   खोला  तो  डाकिया  निकला। 

किस  से   उम्मीद   साथ   की करते ,
मुझसे  अपना  ही फ़ासला निकला ।

जिस   ने  लूटा   था  क़ाफ़ला  लोगो ,
 मुड़  के  देखा तो रहनुमा  निकला ।

उम्र   का    वक़्त  से   जो  रिश्ता  है ,
एक   पानी   का  बुलबुला निकला।

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