·
रोज धरा पर धूप खिलेगी, रोज धरा पर फूल खिलेंगे
लेकिन मेरे प्रियतम बोलो , हम दोनों अब कहाँ मिलेंगे ?
रोज हवा के ठंडे झौंके ,मुझको छूने आ जायेंगे
रोज मचलते जल के धारे , मुझको घायल कर जायेंगे /
मेरे मन के तूफानों का, रोज यहाँ पर धुआं उठेगा
अगर नहीं इस दुनिया में तो ,इसके बाहर कहाँ मिलेंगे ?
चारों तरफ दिशाए खाली ,बेगानी सी हो जाएँगी
बिना तुम्हारे गलियां सूनी , बोझिल बोझिल हो जाएँगी /
चाँद खिलेगा जब अम्बर पर, किसके मुखड़े को देखेगा
बिना तुम्हारे सारी झीलें ,धूमिल धूमिल हो जाएँगी /
रोज यहाँ पर धूल उड़ेगी , रोज यहां पर फूल झरेंगे
प्रियतम मेरे कुछ तो बोलो ,हम दोनों अब कहाँ मिलेंगे ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें