नाउम्मीदी में उम्मीदों का सार ले के चले
जिंन्दगी भर तेरा हम इंतजार ले के चले
जीतके दिल को नही मिलता सुकूं जाने क्यूँ
हर सिकन्दर क्यूँ यहाँ अपनी हार ले के चले
धीरे धीरे तेरी गलियों को भूल जायेंगे
जिसपे जज्बात का हम एतबार ले के चले
कश्तियाँ कैसे उम्मीदों पे खरी उतरेगी
नाखुदा लादके उनमें जो धार ले के चले
जिसकी चाहत पे गुमां करके जिया है ' जी. '
वो तो दुनियाँ की तवज्जोह का भार ले के चले
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