शनिवार, 21 फ़रवरी 2015

याद आ गई मुझे वो दाँस्ता पुरानी, 
 जिससे जुडी हुई मेरी जिन्दगी की कहानी, 

 वो सफर जो गुजरा हसीन राहों में था 
 कदम बचपन की गलियों में मगर दिल दोस्ती की राहों मे था,

 हर रोज दिल में एक नया ख्याब पनपता था, 
 एक सुखद अहसास लिए दिल हमेशा धडकता था, 

 वो जब मुझसे मिली थी तो कुछ नया हुआ था, 
 पहली मुलाकात में ही सौरी शब्द प्रयोग हुआ था, 

 चेहरे की चमक और उज्जवलता, 
संग सी शक्ल का उसपे छिडकाव हुआ था, 

 मन में बस गई वो छवि कुछ नया सा अहसास हुआ था, पतझण का था मौषम मगर वसंत का अहसास हुआ था, 

 मैंने शब्दों को पिरोकर ऐषा तीर फैंका था, 
 उनकी सौरी बाले शब्द को उनकी चिनग बनाया था, 

 अब वो मुझे रोज हमें जब भी मिला करती थी हमारे मुँह से सौरी शब्द सुनकर वो विफर जाया करती थी अक्सर क्रोध में पैर पटक कर वो सामने से निकल जाती थी मैंने शुरु आत में ही दुश्मनी का फूल वो दिया था, अभी दोस्ती भी न हुई थी और दुश्मनी का अध्याय शुरु हो गया था, मुझको मगर हसने का एक बहाना मिल गया था, वो मुझसे जलती और खूब चिढती थी, मगर किसी कौने में उसके मेरी गुस्ताखियाँ बसती थीं, मेरे दिल में कुछ ख्यालात रोज नये नये कर आते थे मगर हम सिर्फ उनहें स्वप्न समझ रहा जाते थे ये सौरी शब्द बडा ही विकराल निकला था इसी की वजह से मेरी जिन्दगी का वहुत सारा हसीन वक्त कुछ बिगडा था, आज मेरी लिखने की वजह वो कल की सौरी ही हैं, सच में नादानियाँ अब समझ आया जरुरी भी है, हमने तो नादान उम्र में नादानियों के बीच मुहोब्बत की थी, ये सौरी बाली नादानियाँ सच में वहुत गम्भीर रुप लिये थी। दाऊ जी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

अंतर्द्वंद

मेरी सोची हुई हर एक सम्भावना झूटी हो गई, उस पल मन में कई सारी बातें आई। पहली बात, जो मेरे मन में आई, मैंने उसे जाने दिया। शायद उसी वक्त मु...