मेरी इश्क बाली डायरी
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रविवार, 17 मार्च 2024
अंतर्द्वंद
बुधवार, 18 मई 2022
तन्हाई में हम, किसी को पुकारें
तन्हाई में हम, किसी को पुकारें।
लरजती हैं शाखें, ओ गुल झूमते हैं,
लगता हैं आने को फिर से बहारें।
गरजता है बादल भी खामोशियों से,
चमकती हुई बिजलियाँ क्या पुकारें.
हरी घास पर मानो जादू हुआ है,
नई कोंपलों को ये कैसे निहारे.
हैं शबनम के मोती फ़िदा पत्तियों पर,
सूरज की किरणें भी इनको निखारें।
मस्ती में झूमे हैं गुल-ओ-शजर सब,
जो हर एक को धड़कनों से पुकारें.
खिलता है गुलशन मगर अनमना सा,
कि कलियाँ सभी राह तेरी निहारें।
बाहों में तेरी सकूँ मिल सकेगा,
है उम्मीद बस एक इसी को गुहारें।
लरजती = झूमती, शाखें = डालियाँ, शबनम = ओंस, गुल-ओ-शजर = फूल और वृक्ष, गुहारें = दुहाई देना/आशावान होकर पुकारना, नादीदा = ललचाया हुआ.
गुरुवार, 12 मई 2022
प्रेम अंत से अनंत 1
प्रेम आकर्षण है , प्रेम समर्पण है , प्रेम का वास हृदय में होता है , हृदय आत्मा से जुड़कर परमात्मा में लीन हो जाती है। यह प्रेम जब मानवीय होता है तब इसकी सुंदरता और निखरती है , प्रेम की कोई एक रूपरेखा नहीं है , किंतु सच्चा प्रेम पारलौकिक होता है। मनुष्य सौंदर्य प्रेमी है , जहां भी उसे सौंदर्य का साक्षात्कार होता है वह उसकी ओर आकर्षित हो जाता है , यह प्रकृति प्रदत है।
रितेश फौज में एक जवान के नाते तैनात है।
दो सप्ताह की छुट्टी मिलने पर वह अपने घर लौट रहा था।
रास्ते में ट्रेन एक स्टेशन पर आधे घंटे के लिए किसी कारणवश रुक जाती है।
रितेश प्लेटफॉर्म पर उतर कर खड़े होते हैं , तभी उनके पास कुछ युवतियां आपस में हंसी मजाक करते हुए एक – दूसरे की खिंचाई कर रही थी , हंसी और मजाक के इस संवाद को कोई भी व्यक्ति सुने तो मुस्कुराए बिना नहीं रह सकता था। रितेश भी उनकी बातों पर मुस्कुरा रहा था। तभी युवतियों के मंडली में एक लड़की ने रितेश की ओर देखा और असहज महसूस करते हुए शर्माते हुए वहां से सभी को खींच कर ले जाती है। अब तो उस लड़की का भी मजाक मंडली में बनने लगता है , सभी सहेली को एक और हंसी का माध्यम मिल गया था ।
इस घटना को रितेश ने एक रोचक ढंग से देखा , साहचर्य उसे आभास हुआ कि उसका हृदय सामान्य गति से अधिक धड़क रहा है , लगता है युवती की शर्म हया और उसका घबराना मस्तिष्क से बाहर नहीं निकल रहा है। रितेश पूरे रास्ते उन युवतियों के हंसने , बोलने और उनके अंदाज सभी को एक-एक पल , एक एक क्षण जी रहा था और उससे भी अधिक उस युवती को नहीं भूल पा रहा था जो घबराते हुए सभी सखियों को ले गई थी।
रितेश घर तो पहुंच गया , किंतु उसका दिल अभी भी उस प्लेटफार्म पर लगा हुआ था।
मन मस्तिष्क यही कहता था कब उड़कर उसी प्लेटफार्म पर पहुंच जाऊं और उस दृश्य को फिर अपने आंखों से देखूं। किंतु अब वहां कौन मिलेगा , रितेश बहुत दिनों बाद अपने घर आया किंतु पहले के मुकाबले वह इस बार अधिक खुश नहीं था।
रात को विश्राम करते समय रितेश करवट बदलता रहा किंतु , वह सारी घटना और वह हंसी – ठिठोली , वह मुखड़ा आंखों से ओझल होने का नाम नहीं ले रहा था। पूरी रात इसी प्रकार करवट बदलते निकल गई , किंतु नींद अभी भी नहीं थी। अब रितेश का हृदय उस योवना के साथ हो गया था अब उस यौवना के बिना कहीं मन लगना मुश्किल था।
• मेरी डायरी का वो आखिरी पन्ना- 5
आखिर उस अजनबी तरुणी नवयौवना को ढूंढा कैसे जाए ? और क्या पता वह कहां रहती है ?
तरह-तरह के खयाल रितेश के मन में आते।
और उस यौवना / नव युवती से मिलने के ताने-बाने बुनने लगते , किंतु यह असंभव सा कार्य था।
जो व्यक्ति प्रेम के वशीभूत हो जाता है , वह फिर इस जग से बेगाना हो जाता है।
तरह तरह के ख्याल मन में आते रहते किंतु अंत में यही निकलता आखिर उसको ढूंढा कैसे जाए , कहां मिलेगी।
दो दिन हो गए रितेश के मन से वह दृश्य और चेहरा ओझल नहीं हो रहा था।
रितेश घर के काम से बाजार निकले वहां उन्हें घर के लिए कुछ आवश्यक सामान लेना था , और एक व्यक्ति से मुलाकात करना था। रितेश सारा सामान लेकर उस व्यक्ति से मिलने पहुंचे , किंतु व्यक्ति को आने में समय था इसलिए रितेश पेड़ के नीचे एक चबूतरे पर बैठ गए जो बाजार के बीचो-बीच था।
चबूतरे के पीछे प्राचीन शिव मंदिर था और कुछ दूर पर एक बड़ा सा गिरिजाघर भी था |
रितेश को चबूतरे पर बैठे पंद्रह मिनट हुए होंगे तभी वही चेहरा , वही हंसी – बोली , वही अदाएं लिए वह मूर्ति साक्षात रूप में चलती हुई सामने से आती दिखाई दी। रितेश सोच में पड़ गया ! कहीं या मेरा स्वप्न तो नहीं ? किंतु कुछ क्षण बाद उसका यह भ्रम दूर हो गया , यह कोई स्वप्न नहीं बल्कि साक्षात वही नवयुवती चली आ रही है जो स्टेशन पर मिली थी।
बस क्या था , वह नवयुवती जैसे ही रितेश के सामने से गुजरी , अकस्मात नवयुवती नई निगाहें रितेश को पहचानी और फिर शर्माते हुए तेज कदमों से आगे निकल गई। रितेश अब और बेचैन हो गया और उससे मिलने की तीव्र उत्कंठा में वह अपना सारा समान वहीं छोड़कर उस युवती के पीछे पीछे गया।
किंतु कुछ ही देर बाद वह युवती भीड़ में अदृश्य हो गई।
रितेश चारों तरफ ढूंढता रहा किंतु वह युवती फिर एक बार आंखों से ओझल हो गई , काफी देर ढूंढने के बाद भी जब कोई सफलता हाथ नहीं लगी वापस लौट कर अपना सारा सामान लेकर उस व्यक्ति से बिना मिले वापस घर आ गया।
अब बेचैनी पहले से ज्यादा थी , किंतु एक उम्मीद थी की अब उससे मिलने की संभावना और अधिक होगी।
पहले जिसका अता – पता भी नहीं था अब कम से कम वह उसके इलाके के बारे में जानता तो है।
रितेश अब काम रहे , चाहे ना रहे वह छोटे-छोटे कामों का बहाना बनाकर बाजार पहुंच जाता और प्यासी नजरों से उत्सुक नजरों से उसने युवती को ढूंढता रहता। किंतु नवयुवती कहीं दिखाई नहीं देती , चार-पांच दिन रितेश को परेशान हुआ , बाजार में कहीं भी वह युवती नजर नहीं आई।
रितेश को चिंता सताने लगी कि अब छुट्टी की मियाद भी पूरी हो जाएगी और उस नव युवती से अगर नहीं मिला तो मन कैसे लगेगा और कैसे मैं अपने काम पर पूरे मन से जा सकूंगा ?
आज रितेश की मां को एक गांव शादी में जाना था , आने में रात हो जाएगी , गांव का विवाह रस्मों – रिवाजों और पूरी हिंदू पद्धति से होती है.
इसलिए रात्रि भोज में समय लगने के कारण रात होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है।
मां ने रितेश को अपने साथ शादी में चलने के लिए राजी किया रितेश अनमने ढंग से शादी में जाने को राजी हुआ।
शादी में पहुंचकर मां अपने सखी – सहेलियों में मिल गई रितेश का कोई हम उम्र नहीं था.
इसलिए वह मेहमान खाने में बैठ गया और अपना समय काटने लगा।
एक रस्म की अदायगी के लिए जब सभी लोग आंगन में इकट्ठे हुए , तो रितेश को भी वहां जाना पड़ा सामने कई सारी सखियों के साथ हंसी ठिठोली करते फिर वही चेहरा ठीक सामने नजर आया ! अब रितेश से रहा नहीं जा रहा था , वह चाह रहा था कब उस नवयुवती के हाथ पकड़े और उससे शादी करने का प्रस्ताव रखें।
बस यह भीड़ नहीं होती तो यह कार्य करने में देरी नहीं होती।
किंतु इतने सारे रिश्तेदारी के लोग क्या कहेंगे सब जगह तरह-तरह की बातें बनेगी यह सोच कर कदम एक जगह जैम गए ।
रात को जब वापस घर लौटने की तैयारी हुई , तब मां को छोड़ने उनकी सखी आई और उन सखी के साथ वह नवयुवती भी थी जो मां को विदा करने आई थी। माँ ने अपने सखी से परिचय कराया यह मेरा बेटा है , फौज में है दो सप्ताह की छुट्टी पर आया है। एक सुंदर और घर को संभालने वाली लड़की की तलाश करके इसका भी घर बसा देती हूं ताकि जल्दी से पोते – पोती घर में दौड़े। माँ ने अपनी सखी और उसकी बेटी से परिचय कराया बेटी का नाम ” मृणाली “ है यह आज पता चला। मृणाली कितना ही प्यारा और सुंदर नाम है।
रितेश अब ऐसे खिल गया जैसे बसंत आने पर प्रकृति खिल जाती है। एक सुंदर और दिव्य नजारा जिस प्रकार हो जाता है उसी प्रकार रितेश का मन और शरीर झूम रहा था , उसके रोम-रोम खिल रहे थे।
रितेश ने रास्ते में मां को मृणाली के विषय में बताया और उससे शादी करने की बात भी कही।
मां गाल पर चपत लगाते हुए कहती है –
‘ पगले पहले बताता तो मैं बात करते हुए आती , कोई बात नहीं , मैं समय देखकर बात कर लूंगी ! ‘
बस अब क्या था मां के बात करने का इंतजार।
माँ ने बेटे के मन और बेचैनी का कारण जान लिया था , तो अब मां से कैसे रहा जाता
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